देवशयनी एकादशी का तात्पर्य
चातुर्मास शुरू हो गया है, इसी महीने में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को चार महीने के लिए भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे। इसलिए इस एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस तिथि से हिंदू धर्म मानने वालों के लिए मांगलिक कार्य भी बंद हो जाएंगे। आइये जानते हैं देवशयनी एकादशी का मुहूर्त, देवशयनी एकादशी का धार्मिक महत्व आदि..
कब है देवशयनी एकादशी
पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास शुरू हो गया है। इसके शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे। शुक्ल पक्ष की यह एकादशी भी भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस तिथि की शुरुआत 29 जून गुरुवार सुबह 3.18 एएम से हो रही है और यह तिथि 30 जून 2.42 एएम पर संपन्न हो रही है। यह व्रत 29 जून को रखा जाएगा। इस व्रत के पारण का समय शुक्रवार सुबह 8.20 से 8.43 बजे के बीच है।
कुछ पंचांग में पारण का समय 30 जून को दोपहर 1.48 बजे से शाम 4.36 बजे तक बताया गया है। वहीं 29 जून को हरिशयनी एकादशी पर भगवान की पूजा का समय 10.49 से 12.35 बजे तक बताया गया है।
बंद हो जाते हैं मांगलिक कार्य
हिंदू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु जगत के पालक हैं, शुभ कार्य के लिए इनका जाग्रत अवस्था में होना जरूरी है और देवशयनी एकादशी से ये योग निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए इस अवधि में सारे मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं। अब ये काम प्रोबोधिनी एकादशी को भगवान के जागने पर शुरू होंगे। बता दें कि देवशयनी एकादशी जगन्नाथ यात्रा के बाद आती है। देवशयनी एकादशी से प्रबोधिनी एकादशी यानी देवउठनी एकादशी तक शादी विवाह, मुंडन, व्रतबंध जैसे मंगल कार्य बंद कर दिए जाते हैं। मान्यता है इस समय ये कार्य करने से इनमें कोई न कोई विघ्न आता है।
देवशयनी एकादशी का महत्व
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवशयनी एकादशी पर स्नान दान का विशेष महत्व है। इस समय गोदावरी नदी में स्नान पुण्यफलदायी होता है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए, यह शुभफलदायक और सुख समृद्धि बढ़ाने वाला होता है।