नई दिल्ली। वित्तीय वर्ष के आखिरी महीनों के आते ही सभी वेतनभोगी टैक्स बचाने के लिए नए निवेश की जुगत में लग जाते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि नए निवेश को लेकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। अगर आप सिर्फ टैक्स बचाने की आपाधापी में कोई भी योजना चुनते हैं इससे आपकी गाढ़ी कमाई फंस सकती है। ऐसे में सबसे पहले आकलन करें कि आप कितनी बचत आप कुल आय में कर सकते हैं। आप कितनी अवधि तक निवेश चाहते हैं और लक्ष्य क्या है। अंत में यह तय करें कि सुरक्षित निवेश के तहत परंपरागत स्कीम या बाजार में जोखिम से जुड़ी योजना में निवेश चाहते हैं। सबसे पहले यह आकलन कर लें कि आपने अब तक जो निवेश किया है, उसमें कौन-कौन सा 80सी के दायरे में है। इससे आपको यह पता लग जाएगा कि कितना और निवेश धारा 80सी के तहत किया जा सकता है। कई बार जल्दबाजी में आप नया निवेश करते हैं, लेकिन धारा80सी के तहत कटौती की सीमा आप पार कर चुके होते हैं। ऐसे में पहले ही आकलन करना जरूरी है। ध्यान रखें कि ईपीएफ अंशदान की भी इसी में गणना होती है। 80सी, 80 डी या अन्य योजनाओं में निवेश की पूरी रकम को कुल आय में घटाकर आप जान सकते हैं कि कितना आय करयोग्य है। अगर इसके बाद भी आपकी आय टैक्स छूट की सीमा 2.5 लाख रुपये से ज्यादा आती है तो टैक्स सेविंग की जरूरत है। अगर 80सी में और टैक्स बचाने की गुंजाइश है तो ही उसमें निवेश करें। धारा 80सी के तहत आप 1.5 लाख रुपये तक के निवेश पर कर छूट का दावा कर सकते हैं। लघु अवधि की योजनाओं में एनएससी, एफडी या वरिष्ठ नागरिक बचत जैसी योजनाएं हैं। वहीं पीपीएफ और एनपीएस में निवेश लंबे समय का होता है। अगर बाजार में पैसा लगाने के इच्छुक हैं तो इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम सबसे अच्छा विकल्प है। अगर आपका होम लोन चल रहा है तो उस पर भी कर छूट का दावा कर सकते हैं। एनपीएस में निवेश कर धारा 80सीसीडी(1बी) के तहत 50 हजार रुपये की अतिरिक्त बचत की जा सकती है।