नई दिल्ली
आगामी लोकसभा चुनाव में पिछली सफलता दोहराने और उससे आगे बढ़ने का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा मौजूदा सांसदों को उम्मीदवार बनाते समय क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता को प्रमुख आधार बनाएगी। पार्टी नए और युवा चेहरों को भी सामने लाएगी, लेकिन उम्र या परिजनों को टिकट न देने के किसी फार्मूले पर ज्यादा जोर नहीं देगी। पार्टी की नजर कमजोर स्थिति वाले सांसदों पर भी है और संसद के मानसून सत्र में नेतृत्व उनसे अलग से संवाद भी करेगा।
भाजपा लोकसभा चुनावों के लिए अपनी जमीनी तैयारियों को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रही है। लोकसभा चुनाव से पहले जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव नहीं होने हैं, वहां पर पार्टी की रणनीति पूरी तरह लोकसभा चुनावों के अनुसार चल रही है। पार्टी सांसदों की लोकप्रियता का भी आकलन किया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, लगभग 30 फीसदी सांसदों की अपने क्षेत्रों में लोकप्रियता घटी है। आम जनता के साथ पार्टी कार्यकर्ता भी इनके कामकाज से ज्यादा खुश नहीं है।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी संगठन और जनता में सासंदों की लोकप्रियता को मुख्य आधार बनाएगी। इसके लिए वह कई स्तरों पर सर्वे और संवाद से जानकारी भी जुटा रही है। पार्टी ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि उम्र का बंधन व परिजनों को टिकट देने पर लचीला रुख अपनाया जाएगा। ऐसे में जीत की प्रबल संभावना वाले उम्मीदवारों को अन्य कारकों पर वरीयता दी जाएगी। हालांकि पार्टी परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देगी। साथ ही नए लोगों को भी ज्यादा मौका देगी।
गौरतलब है कि भाजपा ने काफी समय पहले से ही अपनी हारी हुई और कुछ कमजोर 160 से ज्यादा सीटों के लिए तैयारी शुरू कर दी थी। इनमें भाजपा ने अपने संगठन व जनता में पैठ को काफी मजबूत भी किया है। हालांकि दूसरी तरफ सूत्रों का कहना है कि उसके मौजूदा सांसदों में लगभग एक-तिहाई की रिपोर्ट अच्छी नहीं है। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 37.36 फीसदी वोट के साथ 303 सीटें जीती थी। चूंकि भाजपा ने लगातार 2014 व 2019 में दो चुनाव जीते हैं और उसकी सीटें भी बढ़ी हैं। ऐसे में पार्टी अपनी मौजूदा सीटों के साथ नए क्षेत्रों में भी बढ़ने की कोशिश में हैं।