कोलकाता
तारीख 28 मई, 2010। मुंबई की ओर जा रही ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई। जब आंकड़े सामने आए, तब यह तो साफ हो गया था कि कम से कम 148 लोगों की मौत हुई है और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। लेकिन आज करीब 13 सालों के बाद भी 17 यात्रियों के परिवार अपने घर के सदस्य के अंतिम दर्शन की तलाश है। दुखी मन में आस लेकर ये लोग आज भी मृत्यु प्रमाण पत्रों के लिए अदालतों और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के रहने वाले 57 साल के राजेश कुमार बत्रा उस हादसे में 12 साल के बेटे सौरव, 17 साल की बेटी स्नेहा और पत्नी को खो चुके हैं। दुख की बात यह है कि बेटे को अस्पताल में मरते हुए देखा, पत्नी के शव को 7 महीनों बाद खोज पाए, लेकिन स्नेहा आज भी लापता है। तीनों यात्री एस 3 में यात्रा कर रहे थे और छुट्टियां मनाने के लिए भिवंडी जा रहे थे।
वह बताते हैं, 'मैंने उन्हें रात में रवाना किया। अगली सुबह मुझे पश्चिमी मिदनापुर से एक कॉल आया, जिसने बताया कि ट्रेन का हादसा हो गया और बेटा गंभीर रूप से घायल हो गया है। तब तक पत्नी और बेटी का कुछ भी पता नहीं था।'
बत्रा अस्पताल पहुंचे, जहां तीन दिनों के बाद बेटे ने दम तोड़ दिया। उन्होंने कहा, 'मुझे लिलुआ पुलिस स्टेशन से कॉल आया कि बॉडी नंबर 51 की पहचान इंदू देवी बत्रा के रूप में हुई है और मुझे कोलकाता के मुर्दाघर से शव लेने के लिए कहा गया।' अब तक उनकी बेटी का कोई पता नहीं है। ऐसी ही कहानी अपने पिता प्रसनजीत अट्टा को खोज रहीं पोलमी अट्टा, परिवार के चार सदस्यों के गंवाने वाले सॉल्ट लेक के सुरेंद्र कुमार सिंह की है।
जिम्मेदारों को जमानत
इस साल मार्च में ही कलकत्ता हाईकोर्ट की एक बेंच ने सीबीआई की तरफ से गिरफ्तार किए गए लोगों को जमानत दे दी। बीते साल नवंबर में भी 6 और आरोपियों को जमानत मिल गई थी। कथित तौर पर ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को माओवादियों ने निशाना बनाया था। तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी इस हादसे की जांच सीबीआई को सौंपी थी। अब बालासोर की घटना के बाद उन्होंने कहा, 'रेल मंत्री के तौर पर मैंने सीबीआई को ज्ञानेश्वरी हादसे की जांच की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन 13 सालों के बाद भी जांच में कुछ नहीं मिला।' सीबीआई को जून 2010 में जांच सौंपी गई थी।
बालासोर की घटना
बालासोर में तीन ट्रेनों की दुर्घटना में 288 लोग जान गंवा चुके हैं। यहां भी सरकार ने सीबीआई को जांच का जिम्मा सौंप दिया है। बहरहाल, ओडिशा की पटरियों पर तो ट्रेनों की वापसी हो गई, लेकिन जिंदगी की पटरी से उतरी सैकड़ों जानें आज भी अस्पताल में संघर्ष कर रही हैं।