तेलंगाना
लोकसभा चुनावों के पहले संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए भाजपा के शीर्ष नेताओं ने लगभग दस घंटे का गहन मंथन किया। सोमवार रात व मंगलवार को दिन में दो दौर की बैठकों में पार्टी नेतृत्व ने हर राज्य व केंद्रीय संगठन से जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीर विचार विमर्श किया है। संगठन में विभिन्न स्तरों पर बदलाव व खाली पड़े पदों को लेकर भी चर्चा की गई है। इस मंथन में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, महासचिव संगठन बी एल संतोष, महासचिव सुनील बंसल व उपाध्यक्ष सौदान सिंह शामिल रहे।
कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल प्रदेश की चुनावी हार को भाजपा नेतृत्व ने काफी गंभीरता से लिया है। दोनों जगह उसकी प्रमुख विरोधी कांग्रेस उस पर भारी पड़ी है। ऐसे में लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी किसी भी तरह के आत्मविश्वास में नहीं रहना चाहती है, बल्कि अपनी कमियों को तलाश कर उनका उचित समाधान करने में जुट गई है। सूत्रों के अनुसार, सोमवार रात लगभग चार घंटे और मंगलवार को दिन में लगभग छह घंटे के मंथन में भाजपा नेतृत्व ने राज्यों व केंद्रीय संगठन के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की व्यापक समीक्षा की है।
सूत्रों के अनुसार बैठक में लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले पांच राज्यों के चुनाव को लेकर भी चर्चा की गई और इन राज्यों के हालात व भावी कदमों को लेकर रणनीति भी तैयार की गई है। पार्टी मध्य प्रदेश को अपने पास बरकरार रखने के साथ छत्तीसगढ़ व राजस्थान को कांग्रेस से छीनने के लिए पूरी ताकत झोंकेगी। तेलंगाना को लेकर भी पार्टी बेहद गंभीर है और अभी तक की कोशिशों पर पानी नहीं फिरने देगी। इन राज्यों में चुनावी रणनीति के लिए जरूरी बदलाव करने से भी वह नहीं हिचकेगी। बैठक में राज्यवार चर्चा में कुछ राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों को बदले जाने पर भी चर्चा की गई है। इसके अलावा कुछ राज्यों के संगठन प्रभारी भी बदले जा सकते हैं। सूत्रों के अनुसार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना के प्रदेश अध्यक्षों की रिपोर्ट अच्छी नहीं है। उनके खिलाफ संगठन से ही शिकायतें हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में भी संगठनात्मक दिक्कतें है। मध्य प्रदेश में तो प्रभारी ही मुद्दा बने हुए हैं। ऐसे में कुछ प्रदेशों में अध्यक्षों के साथ प्रभारियों में भी बदलाव किए जाने के संकेत हैं।
सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय संगठन में भी फेरबदल को लेकर चर्चा की गई है। खासकर महासचिवों को लेकर। सबसे वरिष्ठ महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के पास कोई बड़ा दायित्व नहीं है। डी पुरंदेश्वरी व दिलीप सैकिया अभी तक अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। कुछ महासचिवों को लेकर तो उनके अपने गृह राज्य से भी शिकायतें हैं। संगठन के बदलावों से केंद्र सरकार पर भी कुछ असर पड़ेगा। अगर निकट भविष्य में केंद्र में विस्तार या फेरबदल होने की स्थिति में कुछ नेताओं के सरकार से संगठन में व संगठन से सरकार में जाने की स्थिति बन सकती है।