नई दिल्ली
अगर आपके घर में भी कोई कहता है कि वो अमेरिका में जाकर सालाना 80 लाख रुपये कमाता है तो आप उन्हें बताएं कि उनकी तरह की लाइफस्टाइल जीने के लिए भारत में आपको केवल सालाना 23 लाख रुपये ही खर्च करने पड़ेंगे। आइए जानते हैं कि किस तरह यह तय किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, कई बार हम नेट पर चेक करते हैं कि भारत में मिल रहे समान की कीमत अमेरिका या फिर किसी और देश में कितनी है। दूसरे देश की करेंसी की परचेजिंग पावर को एक पैरिटी के जरिये चेक किया जा सकता है। इसे परचेजिंग पावर पैरिटी भी कहा जाता है। इस पैरिटी के जरिये हम आसानी से जान सकते हैं कि हम भारत में 100 रुपये में क्या खरीद सकते हैं, और अमेरिका में क्या खरीद सकते हैं।
परचेजिंग पावर पैरिटी होती क्या है?
क्रय-शक्ति समता (पर्चेजिंग पावर पैरिटी- (PPP)अंतरराष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार विभिन्न देशों में एकसमान वस्तुओं की कीमत समान रहती है। इसको आसान भाषा में समझें तो पर्चेजिंग पावर पैरिटी विभिन्न देशों में कीमतों का माप है, जो देशों की मुद्राओं की पूर्ण क्रय शक्ति की तुलना करने के लिए विशिष्ट वस्तुओं की कीमतों का उपयोग करती है। कई बार लाइफस्टाइल से भी इसकी तुलना की जाती है।
पीपीपी एक दिलचस्प इकॉनमिक कॉन्सेप्ट है। सरल शब्दों में यह एक तरह की दर है, जिस पर प्रत्येक देश में समान और सेवाएं खरीदने के लिए एक देश की मुद्रा को दूसरे देश की मुद्रा में परिवर्तित करना होता है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि भारत के मिडल क्लास के लिए सालाना बजट अगर 25 लाख का होता है, तो अमेरिका के मिडिल क्लास फैमली का बजट 80 लाख से ज्यादा होता है। ऐसे मे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर आप अमेरिका जाते हैं तो आपको कितना खर्चा पड़ेगा?
परचेजिंग पावर पैरिटी एक महत्वपूर्ण कारक है। इसे ज्यादातर लोग नौकरी लेते समय या विदेश में शिफ्ट करते समय अनदेखा करते हैं। जब आपको नौकरी का प्रपोसल मिलता है तब इसके जरिये आप जान सकते हैं कि आपको कहां रहना अच्छा होगा। मान लीजिए आपको भारत की किसी कंपनी ने 30 लाख सालाना का पैकेज ऑफर किया है, वहीं अमेरिका की भी कंपनी ने आपको 80 लाख सालाना का पैकेज दिया है तो ऐसे में आप किसे सेलेक्ट करेंगे।
आइए इसे ऐसे समझते हैं, अगर आप सालाना भारत में 23 लाख रुपये खर्च करते हैं जो यूनाइटेड किंगडम में 65 लाख रुपये और संयुक्त अरब अमीरात में 37 लाख रुपये के अनुसार होगी। लेकिन यह बात भी सच है कि पीपीपी का पैरामिट एकदम सटीक नहीं होता है। क्योंकि विकसित देश सार्वजनिक बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी, सेवाओं, अवसरों और समग्र रूप से सामाजिक सुरक्षा भी प्रदान करते हैं। इसी तरह आपको बाकी कई कारकों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए।