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अनुभूति जीवन में जब तक नहीं होगी तब तक विश्वास नहीं होगा – दीदी मां मंदाकिनी

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रायपुर
अनुभूति जीवन में जब तक नहीं होगी तब तक विश्वास नहीं होगा. चाहे वह ईश्वर के प्रति ही क्यों न हों। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस संसार में ईश्वर है,वह हमारे ह्दय में सोये हुए हैं पर हमें उनके होने की अनुभूति नहीं हो रही है। कितनी बड़ी विडंबना है कि हम उन्हे खोज रहे हैं। ईश्वर को जगाने के लिए क्या करना होगा हमें उन्हे उठाने के लिए उनके नाम से पुकारना होगा। लेकिन किस नाम से उन्हें पुकारना यह हमें पता नहीं है तो हम भटकते ही रहेंगे। इसलिए हर व्यक्ति के जीवन में गुरू का होना जरूरी है,नाम का मंत्र हम किसी गुरु के द्वारा ही ग्रहण करें यह कोई रूढ़िवादिता नहीं है। लेकिन पाश्चात्य व आधुनिक तकनीक का चिंतन रखने वाली पीढ़ी गूगल को ही अपना गुरू मान बैठी है। राजा दशरथ को भी भगवान श्रीराम के ईश्वरत्व का बोध विश्वामित्र ने ही कराया था।

श्रीरामकिंकर आध्यात्मिक विचार मिशन द्वारा सिंधु पैलेस शंकरनगर में आयोजित श्रीरामकथा ज्ञान यज्ञ में दीदी मां मंदाकिनी ने मानस के प्रसंगो को मानव जीवन से जोड़कर कई बातें बतायी,समस्त वंदनों में से भगवान के नाम की वंदना सबसे विशिष्ट है। भगवान श्रीराम भी अगर अपनी वंदना करेंगे तो वह उतना विशिष्ट नहीं होगा जितना नाम की वंदना करने से मिलेगा। सबसे अधिक साधकों में कोई है तो वह है राम के नाम की। वे हर काल में विद्यमान है, सर्वव्यापी भी है, हम सबके हृदय में भी वह विराजमान है। ईश्वर हमारे ह्दय में सोया हुआ है। ईश्वर को जगाने के लिए क्या करना होगा हमें उन्हे उठाने के लिए उनके नाम से पुकारना होगा। लेकिन किस नाम से उन्हें पुकारना यह हमें पता नहीं है और इसीलिए हम भटक रहे हैं।

एक सुंदर उदाहरण देते दीदी मां  ने कहा कि अगर बच्चे को सुबह-सुबह स्कूल भेजना हो और स्कूल बस आने वाली है उस समय बालक सोया हुआ है तो उसे किस नाम से हम पुकारेंगे, हम उसका नाम लेकर ही तो पुकारेंगे। नाम शब्द जब उस बालक के कानों में पहुंचता है तब वह सोया हुआ बालक जाग जाता है। जो हम इस बालक के लिए कर रहे है वही हम भगवान को जगाने के लिए कर सकते है। जगाने का सबसे सरल उपाय क्या है उनके नाम का स्मरण करके पुकारा जाए। सुनने को लेकर ही उन्होने एक और प्रसंग व्यक्ति से जोड़कर कहा कि आजकल लोगों के कान पर हर समय मोबाइल फोन लगे रहता है तो वह आवाज देने पर क्या सुनेगा? चाहे आवाज देने वाले व्यक्ति को कितना भी जरूरी व आवश्यक मदद की जरूरत क्यों न हो. इस तरह मोबाइल में व्यस्त रहना भी गलत बात है।

दीदी माँ ने कहा कि राम नाम बहुत ही मूल्यवान रत्न है। अगर हीरा आपके पास आ जाए, क्योंकि हीरा तो निकलता है खदान से और छत्तीसगढ़ में भी कोयले की कई खदान है और इसमें से ही हीरा मिल गया लेकिन उस रत्न की रत्नागिरी से आप परिचित नहीं है, आपको यह अनुभूति नहीं है तो उसे कोयला ही समझेंगे और उसे कचरे में फेंक देंगे। कहीं उसे रख दे तो उस हीरे को क्या कोई फर्क पड़ेगा ,क्योंकि जब तक रत्न का पारखी कोई नहीं होगा तब तक हमें इसकी जानकारी नहीं होगी। लेकिन ऐसा कोई जौहरी अगर मिल जाए क्योंकि जौहरी को ही रत्नों की पहचान करने की विद्वता होती है। वह पहचान जाता है कि यह असली या नकली। वैसे ही राम नाम का रत्न हम सबके पास है पर यह रत्न होते हुए भी हम सब दुखी है क्योंकि इसके लिए हमें गुरू व संत रूपी जौहरी की आवश्यकता है। गुरु ही उस रत्न के मूल्य का अवबोध कराएंगे। ऐसे जौहरी के मूल्यांकन से ही आपके ऊपर पड़े दुखों का पहाड़ एक क्षण में दूर हो जाता है। गुरु की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को होता है क्योंकि गुरु के बिना कोई भी कार्य अधूरा है।

भगवान आपके जीवन में सक्रिय हैं तो आपके जीवन में वह सारी लीलाएं प्रकट होगी जो उन्होंने तीनों युगों में किया था। अगर आपकी अहिल्या चैतन्य हो गई, आपके अंदर की ताड़का का नाश हो गया, अगर भगवान शंकर का धनुष टूट चुका है तो आप समझ लीजिए कि आपके नाम की साधना व्यर्थ नहीं गई है और वह ठीक-ठाक चल रही है। पर आप ऐसा अनुभव नहीं करते है तो संत और गुरुरुपी जौहरी ही आपको जीवन नैय्या से पार लगवा सकते है। राजा दशरथ को भी राम के ईश्वरत्व का बोध गुरू विश्वामित्र ने ही कराया था।