भोपाल
प्रदेश में शराब की बोतलों में बारकोड में हुई बड़ी गड़बड़ी के मामले में आबकारी विभाग की अब तक की कार्यवाही कई सवाल पैदा कर रही है। इन सवालों के जवाब तलाशने के बजाय विभाग ने अब तक कुछ ऐसे अफसरों को अपने रडार पर नहीं लिया है जो इसके लिए सीधे तौर पर उत्तरदायी हैं।
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि 750 एमएल शराब की बोतल में 90 एमएल शराब का होलोग्राम लगा है तो होलोग्राम के आधार पर की जाने वाली शराब की मात्रा में शेष बची 660 एमएल शराब कहां जा रही है। इसकी जांच कोई नहीं करना चाहता है ताकि किसी पर कार्यवाही की आंच न आ सके। शराब बोतलों में बारकोड चिपकाने के मामले में हुई कार्यवाही को लेकर जो जानकारी सामने आई है उसे मानवीय त्रुटि मानते हुए जिम्मेदार अफसरों को क्लीनचिट दी गई है।
सूत्र बताते हैं कि इस गड़बड़ी को ऐसा समझा जा सकता है कि अगर 750 एमएल की शराब के बारकोड के स्थान पर 90 एमएल की दूसरी शराब का डिटेल बारकोड स्कैन करने पर आ रहा है तो उसमें से शेष बची 660 एमएल शराब आखिर कहां जा रही है? इसका जवाब साफ होना चाहिए जो अब तक स्पष्ट नहीं है। बारकोड (होलोग्राम) के हिसाब से तो बोतल में 90 एमएल ही शराब भरी गई है और वही रिकार्ड में है तो यह स्पष्ट होना जरूरी है कि 660 एमएल शराब किसे दी गई है?
कहीं इसकी आड़ में अवैध शराब तो नहीं बिक रही
एक सवाल यह भी उठाया जा रहा है कि जितने बारकोड चिपकाए गए उसके बाद बचे बारकोड का हिसाब क्या है? इसकी जानकारी आबकारी आयुक्त द्वारा मांगी गई रिपोर्ट में उपायुक्तों ने नहीं दी है। आशंका जताई जा रही है कि बचे बारकोड को अवैध शराब में बदलने का काम तो नहीं किया जडा रहा है। ऐसे में विभाग के उपायुक्तों, सहायक आयुक्तों की मिलीभगत की आशंका भी जताई जा रही है। यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसीलिए विस्तृत जांच से किनारा करने की कोशिश की जा रही है।