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काउंसिल हाउस से नया संसद भवन, ऐसा रहा 102 सालों का सफर; 10 अहम तारीख

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नई दिल्ली

रविवार को देश को नई संसद मिली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियासत और धर्मों से जुड़ी बड़ी हस्तियों के बीच नए भवन का उद्घाटन किया। हालांकि, कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने कार्यक्रम दूरी बनाने का फैसला कर लिया था। वहीं, नई इमारत की तारीफ करते कई बड़े दल समारोह का हिस्सा भी बने। एक नजर 102 साल के संसद के सफर पर डालते हैं।

12 फरवरी, 1921: ‘ड्यूक ऑफ कनॉट’ ने संसद भवन की आधारशिला रखी। उस समय इसे ‘काउंसिल हाउस’ कहा जाता था।
18 जनवरी, 1927: तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने संसद भवन का उद्घाटन किया।
9 दिसंबर, 1946: संविधान सभा की पहली बैठक।
14/15 अगस्त, 1947: संविधान सभा के मध्यरात्रि सत्र में सत्ता का हस्तांतरण।
3 अगस्त, 1970: तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि ने संसदीय सौध की आधारशिला रखी।
24 अक्टूबर, 1975: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसदीय सौध का उद्घाटन किया।
15 अगस्त, 1987: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद पुस्तकालय की नींव रखी।
31 जुलाई, 2017: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसदीय सौध के विस्तार किए गए हिस्से का उद्घाटन किया।
10 दिसंबर, 2020: प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन की आधारशिला रखी।
28 मई, 2023: प्रधानमंत्री मोदी ने नए संसद भवन का उद्घाटन किया।

11 श्रमिकों का सम्मान
संसद के निर्माण में वैसे तो 60 हजार मजदूरों ने कार्य किया, लेकिन प्रतीक के रूप में इन 11 मजदूरों का सम्मान के लिए चयन किया गया। पीएम ने अपने संबोधन में कहा भी कि इस संसद भवन ने करीब 60 हजार श्रमिकों को रोजगार देने का भी काम किया है। उन्होंने इस नई इमारत के लिए अपना पसीना बहाया है। उन्होंने खुशी जताते हुए कहा है कि इनके श्रम को समर्पित एक डिजिटल गैलरी भी संसद में बनाई गई है। विश्व में शायद यह पहली बार हुआ होगा। संसद के निर्माण में अब उनका योगदान भी अमर हो गया है।

नए संसद भवन में परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा
नए भवन की सुरक्षा को किले में तब्दील करने के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया गया है। इसमें सीसीटीवी कैमरे से लेकर थर्मल इमेजिंग सिस्टम तक लगे हैं। इसके साथ ही यह साइबर सिस्टम से लैस है। हैकर इसमें सेंध नहीं लगा पाएंगे।

पुख्ता बंदोबस्त
– नए संसद भवन की इमारत में थर्मल इमेजिंग सिस्टम को इंस्टॉल किया गया है।
– इसकी मदद से किसी भी घुसपैठियों की आसानी से पहचान की जा सकती है।
– फेस रिकग्निशन सिस्टम और 360 डिग्री कैमरों को लगाया गया है।
– सुरक्षाकर्मी अत्याधुनिक हथियार और उपकरणों से लैस रहेंगे।
– संसद सदस्यों के प्रवेश के लिए एक नया स्मार्ट कार्ड आधारित पहचान पत्र तैयार हो रहा है।
– स्मार्ट कार्ड आधारित पहचान पत्र प्रणाली में अनेक सुरक्षा विशेषताएं होंगी।
– साइबर हमलों से निपटने के लिए एक सुरक्षा संचालन केंद्र बनाया गया है।

सुरक्षा के कई इंतजाम
नए संसद भवन में कई स्तर की सुरक्षा के इंतजाम किए हैं ताकि किसी भी अनहोनी से बचा जा सकें। ऐसे में नए आईडी कार्ड से लेकर बैरियर, बाड़ और चौकियों तक को स्थापित किया गया है।

कभी नहीं सोचा था, जीवन में नई संसद में बैठूंगा : देवेगौड़ा
शुभारंभ समारोह में रविवार को शामिल होने वाले पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि वह भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक बड़े क्षण के साक्षी बने। 91 वर्षीय देवेगौड़ा ने इस पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह अपने जीवन में नए संसद भवन में बैठेंगे।

उन्होंने कहा, मैंने 1962 में कर्नाटक विधानसभा में प्रवेश किया और 1991 से संसद सदस्य रहा हूं। 32 साल पहले जब मैंने लोगों के इस महान संसद में प्रवेश किया था, तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं प्रधानमंत्री बनूंगा और मुझे इतने लंबे समय तक सार्वजनिक जीवन में रहने की उम्मीद नहीं थी। गौड़ा ने एक बयान में कहा, लेकिन इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने जीवन में कभी नए संसद भवन में बैठूंगा, मैंने ऐसा 91 साल की उम्र में किया।

लोकसभा मयूर और राज्यसभा कमल की आकृति में
उत्तर प्रदेश के करीब 900 कारीगरों ने दस लाख घंटे तक बुनाई करके नए संसद भवन के लिए कालीन बनाए हैं। लोकसभा और राज्यसभा के कालीनों में क्रमशः राष्ट्रीय पक्षी मोर और राष्ट्रीय पुष्प कमल के उत्कृष्ट रूपों को दर्शाया गया है। कालीन तैयार करने वाली भारतीय कंपनी ओबीटी कार्पेट ने कहा कि बुनकरों ने लोकसभा तथा राज्यसभा के लिए 150 से अधिक कालीन तैयार किए।

फिर 35,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैले दोनों सदनों की वास्तुकला के अनुरूप अर्ध-वृत्त के आकार में उनकी सिलाई की गई। ओबीटी कार्पेट के अध्यक्ष रुद्र चटर्जी ने कहा कि बुनकरों को 17,500 वर्ग फुट में फैले सदन कक्षों के लिए कालीन तैयार करने थे। यह टीम के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उन्हें कालीन को अलग-अलग टुकड़ों में सावधानी से तैयार करना था। उन्हें यह सुनिश्चित करते हुए एक साथ जोड़ना था कि बुनकरों की रचनात्मक महारत कालीन को जोड़ने के बाद भी कायम रहे। यह कालीन अधिक लोगों की आवाजाही के बावजूद खराब न हो।