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ब्रज के बरसाना गांव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं

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ब्रज के बरसाना गांव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है। यहां की होली में मुख्यत: नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। नंदगांव की टोलियाँ जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो उनपर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। नंदगांव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी मलकर फिर शुरू हो जाते हैं। बरसाने की यह लट्ठमार होली संपूर्ण जगत में नारी सशक्तिकरण का अनूठा प्रमाण है। होली की इस अनोखी परंपरा से एक और रोचक मान्यता जुड़ी है। 550 वर्ष पूर्व मुस्लिम शासकों के आतंक से परेशान ब्रजबालाओं को आत्मरक्षा के लिए ब्रजाचार्य नारायणभट्ट ने लाठी उठाने को कहा था। लठामार होली के बहाने महिलाओं ने कृष्णकालीन हथियार उठाकर अपने सम्मान की रक्षा की तैयारियां शुरू कर दीं। नारायण भट्ट की प्रेरणा से ब्रजनारियों ने हाथों में लाठियां तो उठा लीं लेकिन प्रहार किस पर करें यह यक्ष प्रश्न था। इसका भी समाधान उसी तर्ज पर निकाला गया कि लठ प्रहार अपने निकटस्थ पर ही किया जाए, क्योंकि अगर अपनों पर भी प्रहार करने में दक्षता हासिल हो गई तो दुश्मन पर प्रहार करना बेहद आसान होगा।