मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से प्रसिद्ध भगवान राम को कौन नहीं जानता. भगवान राम की पारलौकिक शक्तियों के बारे में तो सभी जानते हैं, परंतु जब भगवान विष्णु को पृथ्वी पर अधर्म का नाश करने के लिए भगवान राम के अवतार में आना पड़ा तो उन्हें भी शुभ-अशुभ ग्रहों के परिणाम को भुगतना पड़ा. भगवान राम ने श्री श्वेतवाराहकल्प के सातवें वैवस्वत मन्वन्तर के पच्चीसवें चतुर्युग के मध्य त्रेता युग में जन्म लिया था. कैसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए और क्यों इतने सुखों से वंचित रहे, आइए जानते हैं
कब हुआ भगवान राम का जन्म
हिंदू धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस के बालकांड की एक चौपाई में मर्यादा पुरुषोत्तम के जन्म के बारे में उल्लेख मिलता है.
नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥
जिसका अर्थ है चैत्र का पवित्र महीना था जिसकी तिथि नवमी थी. शुक्ल पक्ष और भगवान राम का प्रिय अभिजीत मुहूर्त था. दोपहर का वक्त था. ना बहुत सर्दी थी और ना ही बहुत गर्मी थी. यह वही पवित्र समय था जो लोकों को शांति देने वाला था.
भगवान राम की कुंडली की विशेषताएं
ज्योतिष शास्त्र के जानकार का कहना है कि भगवान राम की कुंडली कर्क लग्न की थी और उनकी राशि भी कर्क ही थी. मर्यादा पुरुषोत्तम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ था. लग्न के स्वामी चंद्रमा स्वराशि में हैं, जो षष्ठेश और नवमेश गुरु के साथ लग्न में बैठे हुए हैं. भगवान राम की कुंडली की विशेषता यह है कि उनके चारों अलग-अलग केंद्रों में शनि, मंगल, गुरु और सूर्य उच्च के होकर विराजमान है. सबसे शक्तिशाली त्रिकोण यानी नवे घर में शुक्र उच्च के होकर बैठे हैं.
कौन से योग बने कुंडली में
भगवान राम की कुंडली में गजकेसरी योग बन रहा है. साथ ही उनकी कुंडली में रूचक योग, शश पंच योग, महापुरुष योग, हंस योग और लग्न में शत्रुहंता योग भी बन रहा है. भगवान राम की कुंडली के लग्न में दो पापी ग्रह मंगल और शनि की दृष्टि होने की वजह से प्रबल राजभंग योग भी बन रहा है. साथ ही लग्न में बैठे गुरु कुंडली के षष्ठेश भी हैं, जिसके कारण भगवान राम को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा और उनका जीवन संघर्ष में बन गया.
ऐसे बने मर्यादा पुरुषोत्तम
भगवान राम की कुंडली में लग्न में गुरु नवमेश भी हैं. इसी वजह से उन्होंने अपने जीवन में नीति और न्याय का पालन किया. यही मुख्य वजह थी जिसके कारण भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए. भगवान राम की कुंडली के दशम भाव में उच्च के सूर्य बैठे हैं, जिसकी वजह से उन्हें न्याय प्रिय राजा की प्रसिद्धि प्राप्त हुई और इसलिए भगवान राम कई युगों के बाद भी सभी के लिए पूजनीय है.
इस वजह से रहे सुखों से दूर
भगवान राम की कुंडली में राहु तृतीय भाव में विराजमान है, जिसकी वजह से उनके पराक्रम में बढ़ोतरी हुई. वहीं, नवम भाव में उच्च के शुक्र केतु के साथ बैठे हैं. सुख और विलासिता का ग्रह शुक्र, राहु केतु अक्ष पर होने की वजह से भगवान राम अपने जीवन काल में सांसारिक सुख से काफी हद तक दूर रहे.