यूपी
ओला और उबर को कौन नहीं जानता। एप्लिकेशन पर जाओ और सेकेंडों में गाड़ी बुक। अब एंबुलेंस भी इसी तर्ज पर मिला करेंगी। दक्षिण भारत की एक निजी कंपनी ने एप्लिकेशन विकसित कर ली है। कंपनी यूपी में स्वास्थ्य विभाग से लेकर एंबुलेंस ऑपरेटर यूनियनों की मदद से इसे धरातल पर लाने में जुटी है। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग की दो एंबुलेंस चलती हैं। इनमें 102 और 108 नंबर वाली एंबुलेंस शामिल हैं। हर जिले में जरूरत के मुताबिक गाड़ियां दी गई हैं, लेकिन इनकी सीमाएं हैं। एंबुलेंस जिले से बाहर नहीं जाती हैं।
मरीज को अगर दूसरे राज्य या शहर ले जाना है तो स्वयंसेवी संस्थाओं या निजी आपरेटरों की मदद ली जाती है। ऐसे में एंबुलेंस की डिमांड लगातार बढ़ी रहती है। इसी का फायदा लेने के लिए दक्षिण भारत की निजी कंपनी ने ओला जैसी एप्लिकेशन विकसित की है। दक्षिण के कुछ राज्यों में सेवाएं भी शुरू की गई हैं। अब कंपनी की निगाहें प्रदेश पर हैं। बीते दिनों कंपनी के आला अधिकारी आगरा आए। प्रशासन के साथ स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से वार्ता करके आगरा में एंबुलेंस की स्थितियों और उपलब्धता के बारे में जाना। सीएमओ और निजी आपरेटरों से भी बातचीत की है। कंपनी कुछ एंबुलेंस के साथ किराए की गाड़ियां सड़कों पर उतारने की तैयारी में है।
ये होंगी विशेषताएं
– अधिकतर गाड़ियां एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) होंगी
– हर गाड़ी में तकनीशियन और आक्सीजन की सुविधा रहेगी
– जरूरत पड़ने पर मरीज के साथ डॉक्टर को भी भेजा जाएगा
– एप्लिकेशन में भरी गईं सभी सुविधाओं के साथ मिलेगी गाड़ी
– किराए की रसीद दी जाएगी, यूपीआई से कर सकेंगे भुगतान
– एप्लिकेशन और हेल्पलाइन पर फोन करके भी मंगा सकेंगे
– इनका रेस्पांस टाइम सरकारी सेवाओं से बहुत कम रहेगा
विभाग की 60 एंबुलेंस खटारा
निजी कंपनियां इस दौड़ में कूदने ही वाली हैं। कारण स्वास्थ्य विभाग की अधिकतर गाड़ियों का खटारा होना है। कई बार यह बीच में ही खराब हो जाती हैं। जिले में चुनिंदा एएलएस और बीएलएस हैं। इनका रेस्पांस टाइम भी खराब है। एजेंसियां बदलने पर भी दिक्कतें होती रहती हैं। बीच में आपरेटर हड़ताल भी कर देते हैं।
किलोमीटर के हिसाब से किराया
इन एंबुलेंस में किराया पहले से निश्चित रहेगा। यानि लूट-खसोट का कोई खतरा नहीं है। चूंकि गाड़ी, ड्राइवर, तकनीशियन की जानकारी कंपनी के साफ्टवेयर में पहले से होगी, इसलिए रास्ते में भी कोई डर नहीं रहेगा। किराए का स्वरूप तय करने के लिए आपरेटरों से बातचीत चल रही है। छोटी व बड़ी दूरी का औसत निकाला जा रहा है।