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कर्नाटक के रिजल्ट से राजस्थान में बदलेगा BJP और कांग्रेस का गेमप्लान? दोनों दलों के लिए क्या सीख

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जयपुर

कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के बाद अब नजरें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर हैं। दक्षिणी राज्य में कांग्रेस की शानदार जीत और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार के बाद अब दोनों दल राजस्थान समेत तीनों राज्यों में अपनी रणनीति तैयार करने में जुट गए हैं। राजनीतिक जानकार कर्नाटक के नतीजों का असर राजस्थान में भी भाजपा और कांग्रेस के प्लान पर पड़ने की बात कह रहे हैं। राजस्थान में कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैंपेन के भरोसे जीत की उम्मीद लगाए भाजपा को रणनीति पर दोबारा विचार करना पड़ सकता है।  

कर्नाटक में बड़ी हार के बाद भाजपा पुराने चेहरों की जगह नई टीम पर भरोसा करने की रणनीति पर विचार करने को मजबूर हो सकती है। कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके पूर्व डिप्टी सचिन पायलट के बीच मतभेद का फायदा उठाने की कोशिश में जुटी भाजपा में भी 'कप्तानी' को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत समेत कई नेताओं में मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदारी की होड़ है। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की जगह शेखावत या अन्य किसी नेता को मौका दिए जाने की अटकलें चल रही हैं। राजे इन दिनों अपनी ताकत और प्रासंगिकता दिखाने के लिए रैलियों में जुटी हैं। कर्नाटक में चुनाव नतीजे के बाद से पार्टी के कुछ नेता दबी जुबान में कह रहे हैं कि जिस तरह वहां बीएस येदियुरप्पा की विदाई के बाद पार्टी कमजोर हुई है उसी तरह राजस्थान में वसुंधरा राजे जैसी जनाधार वाली नेता को दरकिनार करना मुश्किलें बढ़ा सकता है। वुसंधरा की अगुआई में बीजेपी ने 2013 में कांग्रेस को बुरी तरह परास्त किया था। पार्टी ने 200 में से 163 सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि, 2018 में वह अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख सकीं।

    2018 में कांग्रेस ने राजस्थान में जीत जरूर हासिल की, लेकिन तब से अब तक पार्टी यहां आपसी कलह में ही उलझी रही। चुनाव में बहुमत पाने के बाद सचिन पायलट की इच्छा को दरकिनार करते हुए अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया। पायलट तब से ही सीएम का पद पाने की कोशिश में जुटे हैं। 2020 में बागी तेवर अख्तियार कर लेने वाले पायलट को गहलोत गद्दार तक कह चुके हैं। वहीं, पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन के बाद यात्रा निकाल रहे हैं। वह गहलोत सरकार पर वसुंधरा राजे सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार पर ऐक्शन नहीं लेने का आरोप लगा रहे हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल दोनों खेमो को एकजुट करना है।

हाल के समय में पार्टी नेतृत्व की ओर से जहां गहलोत को खुलकर समर्थन देते हुए उनके ही नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही गई तो असंतोष जाहिर कर रहे पायलट के मुद्दों को मजाक तक कह दिया गया। ऐसे में यदि जल्द हालात को नहीं संभाला गया तो हिमाचल और कर्नाटक में मिली जीत के सिलसिले को कायम रखना मुश्किल हो सकता है। पार्टी के कुछ रणनीतिकार और राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि जिस तरह चुनाव से पहले कर्नाटक में डीके शिवकुमार, सिद्धारमैया समेत सभी नेताओं को बराबर तवज्जो देकर एकजुटता का संदेश दिया गया उसी तरह राजस्थान में भी सबको साथ आना होगा। कर्नाटक के बाद पार्टी अब राजस्थान के मुद्दे को प्रमुखता से सुलझाने जा रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।