नई दिल्ली
अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आते ही कई ऐसी घोषणाएं की, जिसने दुनिया के देशों की नींद उड़ा दी है. उनके एक फैसले से भारत के पड़ोसियों पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देश मुश्किल में पड़ गए हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका फर्स्ट के एजेंडे के तहत सभी विदेशी सहायता को निलंबित करने की घोषणा की. अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, पुनर्मूल्यांकन के बाद ही अमेरिका तय करेगा कि इन देशों को आर्थिक मदद दी जानी चाहिए या नहीं. तब तक अमेरिका की तरफ से दुनिया के देशों में चल रहे सभी सहायता प्रोग्राम स्थगित कर दिए गए हैं.
ट्रंप ने 20 जनवरी को पद की शपथ लेने के बाद जिन कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर किया था, उसमें एक आदेश विदेशी मदद को लेकर भी था. उन्होंने सभी संघीय एजेंसियों को आदेश दिया था कि विदेशों में विकास के लिए दिए जाने वाले फंड को तत्काल 90 दिनों के लिए रोक दिया जाए और जो विकास प्रोग्राम अभी चल रहे हैं, उनका मूल्यांकन किया जाए.
इसके बाद अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने भी ज्ञापन जारी कर घोषणा की कि अमेरिका ने विदेशी सहायता प्रोग्राम के लिए लगभग सभी नई फंडिंग पर रोक लगा दी है. इस निलंबन से इजरायल, मिस्र और अमेरिका के मुख्य मध्य-पूर्वी सहयोगियों को बाहर रखा गया है.
मंत्रालय ने कहा, 'राष्ट्रपति ट्रंप ने साफ कह दिया है कि अगर अमेरिकी लोगों को लाभ नहीं होता तो वो कहीं भी अंधाधुंध खर्च करने नहीं जा रहा है.'
अमेरिका दुनिया भर में सहायता देने वाला सबसे बड़ा इकलौता डोनर है. 2023 में, इसने विदेशी मदद के रूप में 72 अरब डॉलर बांटे, जिसमें अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए अमेरिकी एजेंसी United States Agency for International Development (USAID) के जरिए बांग्लादेश को 40.1 करोड़ डॉलर और पाकिस्तान को 23.2 करोड़ डॉलर शामिल है.
पाकिस्तान को लगा बड़ा झटका
आर्थिक तंगहाली से गुजर रहे पाकिस्तान में कई डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स अमेरिकी मदद से चल रहे हैं. लेकिन ट्रंप के आदेश से ये प्रोजेक्ट्स रुक गए हैं. पाकिस्तान में सांस्कृतिक संरक्षण प्रोजेक्ट्स के लिए एंबेसडर फंड को निलंबित कर दिया है और ऊर्जा क्षेत्र की पांच महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स बंद कर दी हैं. ट्रंप के आदेश से पाकिस्तान में आर्थिक विकास से संबंधित चार प्रोग्राम भी प्रभावित हुए हैं और पांच कृषि विकास प्रोजेक्ट्स को सहायता रोक दी गई है.
इन सबके अलावा लोकतंत्र, मानवाधिकार और शासन-संबंधी प्रोग्राम्स के लिए फंडिंग भी अस्थायी रूप से रोक दी गई है. चार शिक्षा और चार स्वास्थ्य प्रोजेक्ट्स को भी निलंबित कर दिया गया है. अमेरिका के फैसले से शासन संबंधी 11 प्रोजेक्ट्स प्रभावित हुए हैं.
अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि यह फैसला अस्थायी है और सभी सहायता कार्यक्रमों का पुनर्मूल्यांकन करने के बाद इन प्रोजेक्ट्स के भविष्य पर फैसला किया जाएगा.
पाकिस्तान में अमेरिकी दूतावास और कांसुलेट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, पिछले 20 सालों में अमेरिका ने पाकिस्तान को 32 अरब डॉलर की आर्थिक मदद दी है. अमेरिकी सरकार की बेवसाइट ForeignAssistance.gov पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, पाकिस्तान अमेरिकी मदद पाने वाला दुनिया का 20वां सबसे बड़ा देश है.
अमेरिकी मदद रुकने से पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं. देश पहले ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मिले बेलआउट पैकेज पर चल रहा है. पाकिस्तान में महंगाई, बेरोजगारी चरम पर है और आम लोग शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. ऐसे में अमेरिकी मदद से चल रहे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की फंडिंग रुकने से पाकिस्तान को बड़ा झटका लगा है.
अमेरिकी मदद पर पल रहे बांग्लादेश का अब क्या होगा?
USAID जिन देशों को डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के लिए सबसे अधिक मदद मुहैया कराती है, बांग्लादेश उनमें प्रमुख है. इसी एजेंसी की आर्थिक मदद के कारण बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था को लंबे समय से संभाले हुए है और शिक्षा प्रोग्राम्स को चला रहा है.
बांग्लादेश शीर्ष 10 देशों में सातवें स्थान पर जिन्हें अमेरिका विकास कार्यों के लिए सबसे अधिक मदद देता है. पिछले साल दिसंबर में जारी ForeignAssistance.Gov की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस साल अमेरिका में बांग्लादेश को 49 करोड़ डॉलर की मदद मुहैया कराई.
बांग्लादेश अपनी खाद्य सुरक्षा, शिक्षा और डांवाडोल अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए अमेरिकी मदद पर ही निर्भर है. विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका के विदेशी सहायता को अचानक निलंबित करने से बांग्लादेश की बदहाल अर्थव्यवस्था और गर्त में जा सकती है और उसकी चुनाव कराने की कोशिशें भी प्रभावित हो सकती हैं. उन्होंने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश में अमेरिकी मदद से स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में चल रहे प्रोग्राम खतरे में पड़ सकते हैं.
ट्रंप का विदेशी मदद रोकने का आदेश नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के लिए बड़ा झटका है. पिछले साल अगस्त में उग्र छात्र आंदोलन की वजह से शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर भारत भागना पड़ा था. छात्र आंदोलन के दौरान अस्थिर हुआ बांग्लादेश अभी भी स्थिर नहीं हो पाया है.
कोविड-19 महामारी से पहले बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही थी लेकिन इसके बाद देश महंगाई, बेरोजगारी और भारी विदेशी कर्ज में फंसता गया. शेख हसीना के जाने के बाद देश में सांप्रदायिक हिंसा भी बढ़ती जा रही है जिससे देश में राजनीतिक स्थिरता लाने को कोशिशों को खतरा है.
उत्तरी भारत में जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों की प्रोफेसर श्रीराधा दत्ता ने हॉन्गकॉन्ग के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से बात करते हुए कहा, 'USAID की मदद रोकने के परिणाम होंगे क्योंकि कई परियोजनाएं इसकी मदद से चल रही हैं.' उन्होंने कहा कि रिपब्लिकन प्रशासन अकसर सहायता में कटौती करता है और हर बार इस पार्टी का राष्ट्रपति पद ग्रहण करने पर प्रोजेक्ट्स की समीक्षा करता है.
उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन केवल उन्हीं प्रोजेक्ट्स को आर्थिक मदद देगा जो उनकी विदेश नीति के उद्देश्यों के अनुरूप हों. दत्ता ने कहा कि अमेरिकी मदद से बांग्लादेश के स्कूलों में पीने का साफ पानी और कंप्यूटर की आपूर्ति की जाती है. उन्होंने कहा कि अमेरिका अगर यह मदद हमेशा के लिए वापस ले लेता है तो बांग्लादेश पर इसका गहरा असर होगा.
नेपाल में भी रुके अमेरिकी प्रोजेक्ट्स
भारत के पड़ोसी देश नेपाल को भी भारी मात्रा में अमेरिकी मदद मिलती है. नेपाल विकास कार्यों के लिए अमेरिकी मदद पाने वाला दुनिया का 19वां देश है.
1951 से यूएसएआईडी ने नेपाल को 1.5 अरब डॉलर की सहायता दी है. वित्त वर्ष 2020-21 में अमेरिका ने नेपाल को 10.594 करोड़ डॉलर और 2018-19 में 12.5 करोड़ डॉलर दिए थे.
नेपाल में स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, इंफ्रास्ट्रक्चर, आर्थिक विकास, मानवीय सहायता और महिला एवं बाल सशक्तिकरण जैसे प्रोग्राम्स अमेरिकी मदद से चल रहे हैं.
नेपाल में यूएसएआईडी के समर्थन से 21 प्रोग्राम्स चल रहे हैं. ट्रंप के फैसले से इन सभी प्रोग्राम्स पर असर पड़ा है. अगर मूल्यांकन के बाद भी अमेरिका इन प्रोग्राम्स को मदद नहीं देने का फैसला करता है तो नेपाल को बड़ा झटका लगेगा.