वाशिंगटन
पनामा और चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पनामा नहर पर किए गए विवादित दावों को सिरे से खारिज किया है। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने बुधवार को विश्व आर्थिक मंच (WEF) में स्पष्ट रूप से कहा कि पनामा नहर खैरात में नहीं मिली थी और न ही यह अमेरिका का दिया हुआ "तोहफा" है। इस बीच, चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति के इस दावे को खारिज कर दिया कि नहर पर उसका प्रभावी नियंत्रण है। पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने कहा, "हम मिस्टर ट्रंप द्वारा कही गई हर बात को पूरी तरह खारिज करते हैं। सबसे पहली बात तो यह कि उन्होंने जो कहा वह झूठ है। दूसरी बात ये है कि पनामा नहर पनामा की संपत्ति है और हमेशा पनामा की ही रहेगी। यह न तो अमेरिका का दिया गिफ्ट था और न ही कोई खैरात थी।"
ट्रंप की सैन्य कार्रवाई की धमकी
ट्रंप ने अपने विवादास्पद बयानों में नहर पर अमेरिकी नियंत्रण को लेकर सैन्य कार्रवाई से भी इनकार नहीं किया। ट्रंप ने सोमवार को अपने उद्घाटन भाषण के दौरान आरोप लगाया कि चीन "प्रभावी रूप से" नहर का संचालन कर रहा है। उन्होंने कहा, "हमने इसे चीन को नहीं दिया, हमने इसे पनामा को दिया। और अब हम इसे वापस लेने जा रहे हैं।"
पनामा ने UN में शिकायत दर्ज की
ट्रंप के इन बयानों पर पनामा ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है। पनामा सिटी ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस को लिखे पत्र में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उस अनुच्छेद का हवाला दिया है, जिसमें किसी सदस्य राष्ट्र द्वारा "बल प्रयोग या बल प्रयोग की धमकी" का निषेध किया गया है।
चीन ने भी किया खंडन
वहीं, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बुधवार को ट्रंप के आरोपों को निराधार बताया। उन्होंने कहा, "चीन पनामा नहर के मैनेजमेंट और ऑपरेशन में भाग नहीं लेता और उसने कभी नहर के मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया।" पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि पनामा नहर तटस्थता के सिद्धांत पर काम करती है और इसमें किसी अन्य देश का हस्तक्षेप नहीं होता।
पनामा द्वारा ऑडिट की घोषणा
इस विवाद के बीच, पनामा ने पनामा नहर और पनामा पोर्ट्स कंपनी के ऑडिट की घोषणा की है। यह कंपनी हांगकांग स्थित सीके हचिसन होल्डिंग्स की सहायक कंपनी है, जो नहर के दोनों छोर पर बालबोआ और क्रिस्टोबल पोर्ट्स का संचालन करती है। ट्रंप ने हाल के दिनों में डेनमार्क को ग्रीनलैंड बेचने के लिए मजबूर करने और "गल्प ऑफ मेक्सिको" का नाम बदलकर "गल्प ऑफ अमेरिका" करने की अपनी योजनाओं को लेकर भी विवाद खड़ा किया है।
पनामा नहर क्या है?
पनामा नहर एक कृत्रिम जलमार्ग है जो मध्य अमेरिका के पनामा देश में स्थित है। यह नहर अटलांटिक महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ती है और वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है। इस नहर की कुल लंबाई लगभग 82 किलोमीटर है। इसे 1914 में खोला गया था और यह आधुनिक इंजीनियरिंग की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानी जाती है।
पनामा नहर का महत्व
वैश्विक व्यापार में भूमिका: पनामा नहर दुनिया के सबसे व्यस्त और महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है। यह एशिया, अमेरिका और यूरोप के बीच माल ढुलाई को तेज और किफायती बनाती है। नहर के बिना, जहाजों को दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी सिरे (केप हॉर्न) से होकर जाना पड़ता, जिससे यात्रा का समय और खर्च कई गुना बढ़ जाता।
अमेरिका के लिए रणनीतिक और आर्थिक महत्व
व्यापार और परिवहन: पनामा नहर अमेरिका के पूर्वी और पश्चिमी तटों के बीच व्यापार को तेजी से पूरा करने का साधन है। इससे समय और ईंधन की बचत होती है, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए लाभदायक है।
सैन्य महत्व: नहर का नियंत्रण अमेरिका के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, यह अमेरिकी नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग था।
अमेरिकी प्रभाव: अमेरिका ने नहर का निर्माण किया और 1914 से 1999 तक इसका संचालन किया। इस दौरान यह अमेरिका के वैश्विक प्रभाव और शक्ति का प्रतीक भी बना रहा।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भूमिका: पनामा नहर की स्थिति इसे भू-राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाती है। चीन और अन्य देशों की बढ़ती उपस्थिति के कारण, यह अमेरिका के लिए चिंता का विषय बन गया है।
पनामा नहर से जुड़े विवाद
अमेरिका और पनामा का संघर्ष: पनामा नहर के स्वामित्व को लेकर लंबे समय तक अमेरिका और पनामा के बीच विवाद रहा। आखिरकार, 31 दिसंबर 1999 को अमेरिका ने नहर का स्वामित्व औपचारिक रूप से पनामा को सौंप दिया।
चीन की भूमिका: हाल के वर्षों में, चीन ने नहर के आसपास व्यापार और बंदरगाहों में निवेश किया है। यह अमेरिका को चिंतित करता है क्योंकि नहर पर चीन का बढ़ता प्रभाव भू-राजनीतिक संतुलन को बदल सकता है।
पनामा नहर न केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार है बल्कि यह वैश्विक व्यापार, राजनीति और रणनीतिक संबंधों का केंद्र भी है। खासतौर पर अमेरिका के लिए, यह नहर एक आर्थिक और सैन्य रणनीति का अहम हिस्सा रही है। हालांकि, बदलते वैश्विक परिदृश्य में इसका स्वामित्व और नियंत्रण एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।