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शरत सक्सेना बॉलीवुड इंडस्ट्री में 72 साल की उम्र में भी सबसे फिट एक्टर

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मुंबई

बॉलीवुड एक्टर शरत सक्सेना, जिन्होंने पर्दे पर पॉजिटिव और नेगेटिव, दोनों ही तरह के रोल्स किए हैं। वह आज भी 72 की उम्र में इंडस्ट्री के गबरू जवान लगते हैं। उनके सामने अच्छे-अच्छे कलाकार फीके नजर आते हैं। उनकी पर्सनालिटी, उनका वो औरा, वो रुतबा आज भी कायम है जो कि 70-80 के दशक की फिल्मों में पर्दे पर देखने को मिलता था। आज हम सैटर्डे सुपरस्टार सेगमेंट में इन्हीं के बारे में बात करने जा रहे हैं। आइए बताते हैं कि इनकी जर्नी कैसे शुरू हुई और कैसे इन्हें इंडस्ट्री में ट्रीट किया जाता था।

17 अगस्त 1950 को मध्य प्रदेश के सतना में जन्मे शरत सक्सेना ने 'साथिया', 'गुप्त', 'रेडी', 'फना', 'भागम-भाग', 'बादशाह', 'गुलाम', 'अग्निपथ', 'प्यार का पंचनामा 2', 'दबंग 3', 'सिंघम रिटर्न्स' और 'बजरंगी भाईजान' समेत 150 से जैसी तमाम फिल्मों में काम किया है। उन्होंने इतने सालों में सिर्फ सपोर्टिंग रोल्स ही किए। कभी उन्हें लीड रोल्स नहीं मिले। 25 की उम्र में वो मुंबई आ गए थे एक एक्टर बनने के लिए। इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। डिग्री ली लेकिन करना कुछ और ही था। मगर उन्हें वो नही मिला जो वो चाहते थे।

शरत सक्सेना को नहीं मिले मनचाहे रोल
शरत सक्सेना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें एक्टर बनने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े। वह कहते हैं, 'यह एक बहुत ही अजीब स्थिति है जिसका मैं सामना कर रहा हूं। मुझे हमेशा यह समस्या रही है। भारतीय मानसिकता यह है कि मेरे जैसे लोग जो कि मस्कुलर और एथलेटिक हैं उन्हें कभी भी इंटेलैक्चुअल, एक्टर या फिर कवि नहीं माना जाता है। भारतीय संस्कृति एथलेटिक लोगों को बुद्धिमान लोगों के रूप में बढ़ावा नहीं देती है। उन्हें लोग ब्रेनेलेस की तरह ट्रीट करते हैं। इसलिए जब भी अच्छे रोल मिलते हैं, तो डायरेक्टर हमेशा मुझमें वो बात नहीं देखते जो वो खोज रहे होते हैं। जब एक महत्वपूर्ण या भावपूर्ण भूमिका के लिए मुझे काम पर रखने की बात आती है, तो निर्देशक मुझे नहीं रखते क्योंकि उनका मानना है कि मैं ऐसा नहीं हूं जो इसमें फिट हो सकता हूं और मैं पिछले 50 सालों से इसका सामना कर रहा हूं। और यह चलन खत्म नहीं हो रहा है, यह जारी रहने वाला है।'

शरत सक्सेना को कम आंका जाता था
उन्होंने बताया कि इंडस्ट्री में गोरे लोगों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। इसलिए उन्होंने अपने सांवले रंग, घुंघराले बाल और मस्कुलर होने की वजह से अच्छे मौके गंवा दिए। एक्टर ने बताया कि जब वो अपने आप को शीशे में देखते थे तो सोचते थे कि वह कितने हैंडसम हैं। यही बात उनके दिमाग में बैठ गई कि वो हीरो टाइप मेटेरियल हैं। एक्टर ने बताया था कि उन्होंने शुरुआत में एक महीने नौकरी की और उससे एक कैमरा खरीदा। एक दिन धर्मेंद्र जी के भाई वीरेंद्र की फोटोज खींचने गए। वहां उन्होंने मुझसे पूछ लिया कि तुम भी एक्टर बनना चाहते हो?

शरत सक्सेना को ऐसे मिला पहला रोल
शरत सक्सेना ने हां कहा और फिर उन्होंने फोटोज मंगवाई और अपने प्रोड्यूसर को दिखाईं। ऐसे इनको अपना पहला रोल मिला। इसके बाद जो शूटिंग की, उसकी फोटोज लेकर घूमने लगे। वह जगह-जगह स्टूडियो जाकर दिखाते थे। उनको रमेश बहल के यहां से काम मिल गया। सलीम और जावेद साहब से हमारी एक पहचान निकल आई थी तो सलीम जी ने काला पत्थर में धन्ना का रोल दिलवा दिया।

शरत सक्सेना को मिलते थे ऐसे डायलॉग
शरत सक्सेना ने जितनी भी फिल्मों में विलेन का रोल किया उसमें वो हीरो से पिटते ही दिखाई दिए। उनका कहना था कि उस जमाने में अगर कोई आदमी कसरत कर लेता था या फिर बॉडी बना लेता था, पहलवान लगता था तो उसे लेबर क्लास समझा जाता था। वो न एक्टर बन सकता था, न तो राइटर न कुछ और। वो सिर्फ फिल्मों में फाइटर बन सकता था। फिल्मों में सिर्फ यस बॉस, जी बॉस, सॉरी बॉस का डायलॉग मिलता था।

शरत सक्सेना की लोगों ने की तारीफ
शरत सक्सेना ने बताया, 'एक पिता के रूप में मैंने जो पहली फिल्म की वह साथिया थी। लोगों को मेरा काम पसंद आया क्योंकि वे मेरी सराहना करने के लिए सड़कों पर रुक गए, और मुझे एहसास हुआ कि लोगों ने मेरे काम को पसंद किया है और अचानक मैं एक फाइटर से एक्टर बन गया। इसलिए 35 साल फिल्मों में काम करने के बाद एक एक्टर कहा जाना काफी निराशाजनक है। लेकिन वैसे भी उस समय से लोगों ने मेरे काम पर ध्यान दिया और उन्हें एहसास हुआ कि मैं पहले भी अच्छा काम करता था।'