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मुसलमानों के बीच ‘तलाक-ए-हसन’ की वैधता को चुनौती देने वाले संवैधानिक मुद्दे की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट मुसलमानों के बीच 'तलाक-ए-हसन' जैसे न्यायेतर तलाक की वैधता को चुनौती देने वाले बड़े संवैधानिक मुद्दे की जांच करेगा। 'तलाक-ए-हसन' तलाक का वह रूप है जिसके तहत एक व्यक्ति तीन महीने की अवधि के दौरान हर महीने एक-एक बार 'तलाक' बोलकर अपनी शादी खत्म कर सकता है। 'तलाक-ए-हसन' के तहत, तीसरे महीने में तीसरी बार 'तलाक' शब्द के उच्चारण के बाद तलाक को औपचारिक रूप दिया जाता है, बशर्ते इस अवधि के दौरान सहवास फिर से शुरू नहीं हुआ हो। हालांकि, पहली या दूसरी बार तलाक बोले जाने के बाद भी दोनों में अगर सहवास हो जाता है तो माना जाता है कि दोनों पक्षों में सुलह हो गई।

गाजियाबाद की महिला की याचिका
गैर न्यायेतर तलाक को चुनौती देने वाली आठ याचिकाओं की सुनवाई कर रही चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस जे.बी.पारदीवाला की पीठ ने हालांकि कहा कि वह व्यक्तिगत वैवाहिक विवादों में नहीं उलझेगी। इन याचिकाओं में गाजियाबाद की निवासी बेनजीर हिना की याचिका भी शामिल है। बेंच ने कहा कि चूंकि अदालत एक संवैधानिक चुनौती पर विचार कर रही है, यह स्पष्ट किया जाता है कि याचिकाकर्ता (हीना) और नौवां प्रतिवादी (उसका पति), जो पहले से ही अपने वैवाहिक मुद्दों के समाधान के लिए विभिन्न मंचों से संपर्क कर चुके हैं। ऐसे में कोई भी मामला जो संवैधानिक मुद्दे से संबंधित नहीं होगा उसे रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाएगा।

पति को कोर्ट में पेश होने को कहा
कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश अधिवक्ता कानू अग्रवाल से बैच में अन्य याचिकाओं में मांगी जा रही राहत पर एक चार्ट तैयार करने और सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत के समक्ष पेश करने को कहा। सुनवाई की शुरुआत में हिना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि पिछली सुनवाई में उनके पति को उपस्थित होने के लिए कहा गया था और अब एक हलफनामा दायर किया गया है। इसमें वैवाहिक विवाद से संबंधित सभी तथ्य हैं जिन्हें रिकॉर्ड से हटाने की जरूरत है। पति की ओर से पेश एडवोकेट एम.आर. शमशाद ने कहा कि निचली अदालतों ने उनसे आय से संबंधित दस्तावेज दाखिल करने को कहा है, जो उनके पास नहीं है और वह जनहित याचिका के रूप में एक व्यक्तिगत शिकायत का अनुमोदन कर रही हैं।

न्यायालय ने पूछा कि उसे तलाक दिया गया है या नहीं? अगर उसे तलाक दिया गया है तो वह इसे चुनौती दे सकती है। हमें देखना होगा कि चुनौती का आधार क्या है। दीवान ने कहा कि वैवाहिक पहलू मौजूदा संवैधानिक मुद्दे के लिए अप्रासंगिक है। शमशाद ने कहा कि मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं में न्यायेतर तलाक को अवैध ठहराने की मांग की गई है, और इसी तरह की याचिका को पहले शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया था।

क्या है मामला?
पिछले साल 11 अक्टूबर को, SC ने 'तलाक-ए-हसन' और "एकतरफा असाधारण तलाक" के अन्य सभी रूपों को असंवैधानिक घोषित करने की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सहित अन्य से अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने को कहा था। सभी याचिकाओं में मुख्य रूप से लिंग और धर्म-तटस्थ और सभी नागरिकों के लिए तलाक और प्रक्रिया के समान आधार के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग की गई है। अगस्त 2017 में, एक संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले से, एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन बताया था।