लखनऊ
माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी 50 से अधिक आपराधिक मामलों में आरोपी होने के बावजूद करीब तीन दशकों से माफिया राज चला रहा था। उसने अदालती कार्यवाही को रोकने के लिए देरी करने की रणनीति का सहारा लिया, जिससे अब तक कारावास और सजा से बचा रहा। अधिकारियों के मुताबिक, कई आरोप पत्रों में नाम आने के बाद भी उसने अपने खिलाफ आरोप तय करने के अदालतों के प्रयासों में बाधा डाली लेकिन देरी की यह रणनीति आखिरकार पिछले साल सितंबर में फेल हो गई जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसे बरी करने के स्थानीय अदालत के आदेश को पलट दिया और 2003 में लखनऊ जिला जेल के तत्कालीन जेलर एसके अवस्थी को धमकी देने के मामले में सात साल जेल की सजा सुना दी।
इस केस के बाद मुख्तार को तीन अन्य आपराधिक मामलों में भी दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। यूपी पुलिस के विशेष महानिदेशक (एसडीजी) प्रशांत कुमार बताते हैं कि मुख्तार के खिलाफ आरोप तय होने के बाद समानांतर रूप से नौ अन्य मामलों में भी अदालती कार्यवाही में तेजी लाई गई। अधिक जानकारी साझा करते हुए, यूपी की पुलिस अभियोजन शाखा के अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) आशुतोष पांडे ने बताया कि अंसारी ने उन मामलों में अपने खिलाफ आरोप तय होने से बचने के लिए देरी की रणनीति का इस्तेमाल किया, जिसमें उसे सजा होने का डर था।
आशुतोष पांडे ने बताया कि कि अंसारी, जिसने 1995 से 2022 तक लगातार पांच बार मऊ निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के रूप में काम किया, टाल-मटोल की रणनीति का उपयोग करने के चलते किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया गया। वह लगभग 27 वर्षों तक अपनी विधानसभा सदस्यता बरकरार रखने में कामयाब रहा।
सबूतों की कमी के कारण होता रहा बरी
एडीजी ने कहा, 'निचली अदालतों ने सबूतों की कमी के कारण मुख्तार अंसारी को ज्यादातर मामलों में बरी कर दिया गया। कई बार, गवाह अपने जीवन के डर से पक्षद्रोही हो जाते हैं। इसके अलावा, कुछ मामलों में, उन्हें कथित तौर पर 'अनुकूल' बयान देने के लिए भुगतान किया गया था। नतीजतन, उसके खिलाफ कम से कम 25 आपराधिक मामले अभी भी लंबित हैं। पांडे ने आगे कहा कि अंसारी को उसके आधा दर्जन सहयोगियों के साथ कई मामलों में चार्जशीट किया गया था, लेकिन उनमें से हर कोई अपने खिलाफ आरोप तय होने की प्रक्रिया में देरी करने के लिए अलग-अलग वकीलों को नियुक्त करता था।
उनके वकील व्यक्तिगत या चिकित्सा कारणों का हवाला देकर उनके खिलाफ आरोप तय करने से बचने के लिए अदालत की तारीखों को छोड़ देते थे। जब भी कोई न्यायाधीश उनके वकीलों को आरोप तय करने के लिए उपस्थित रहने के लिए कहता था, तो वे यह सुनिश्चित करते थे कि दूर के जिलों की अदालतें किसी अन्य लंबित मामले के संबंध में उसी तारीख को तय कर दें।
उन्होंने कहा कि अंसारी, जो अभी बांदा जेल में बंद है, ने 2022 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा और अपने बड़े बेटे अब्बास अंसारी अपना राजनीतिक उत्तराधिकार सौंप दिया। अब्बास 2022 के विधानसभा चुनाव में उसी निर्वाचन क्षेत्र से विधायक चुना गया। वह प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उसके खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति के मामले में कासगंज जेल में बंद है। एडीजी पांडे ने कहा, 'पिछले साल सितंबर में पहली बार दोषी ठहराए जाने से पहले अंसारी को कई मामलों में बरी कर दिया गया था क्योंकि गवाह मुकर गए।
जबकि कुछ गवाहों की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई थी। कई अन्य ने देरी के कारण न्याय की उम्मीद खो देने के बाद मामले को आगे बढ़ाना बंद कर दिया था। उन्होंने यह भी बताया कि देरी की रणनीति ने मुख्तार और उनके सहयोगियों को कई मामलों में सजा से बचने में मदद की। जहां पुलिस अधिकारी जैसे सरकारी कर्मचारी गवाह थे। इनमें से कई गवाह सेवा से सेवानिवृत्त हो गए या दशकों तक चले मुकदमे के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण सेवानिवृत्त अधिकारी आमतौर पर अदालतों में पेश नहीं होते हैं।
ताश के पत्तों की तरह गिर गया
जहां मुख्तार की कानूनी टीम अपने प्रयास से दशकों तक न्यायिक प्रणाली में कमियों का इस्तेमाल करते हुए उसे बचाने में सफल रही वहीं अब कई मामलों में उसके खिलाफ आरोप तय होने के बाद उसकी दुनिया ताश के पत्तों की तरह ढह गई है। बता दें कि यूपी पुलिस के अभियोजन प्रकोष्ठ ने 2020 से अंसारी की देरी की रणनीति का मुकाबला करने के लिए आक्रामक रूप से मामलों की निगरानी शुरू कर दी थी। उसके खिलाफ लंबित पुराने मामलों में आरोप तय कर दिए गए। इसके बाद, उसे लगातार चार मामलों में दोषी ठहराया गया क्योंकि अदालतों ने भी आरोप तय होने के बाद कार्यवाही तेज कर दी थी।
बता दें कि हाल ही में, गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने नवंबर 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या और जनवरी में व्यवसायी और भाजपा नेता नंद किशोर रूंगटा के अपहरण और हत्या के मामले में 2007 में गैंगस्टर अधिनियम के तहत दर्ज मामले में अंसारी को 10 साल की कैद की सजा सुनाई थी। मुख्तार के सांसद भाई अफजाल अंसारी को भी चार साल की कैद हुई है। कोर्ट ने मुख्तार और अफजाल पर क्रमश: 5 लाख और 1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। 15 दिसंबर 2022 को गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज एक अन्य मामले में मुख्तार को दोषी करार दिया गया था। यह मुकदमा 1999 में गाजीपुर जिले के सिटी कोतवाली थाने में दर्ज किया गया था। मामले की सुनवाई करते हुए गाजीपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने उसे 10 साल कैद की सजा सुनाई थी।