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भावुक याचिका दायर की गई है, जिसमें 11 महीने की एक बच्ची के इलाज के लिए 14 करोड़ रुपये की आवश्यकता बताई

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नई दिल्ली
भावुक याचिका दायर की गई है, जिसमें 11 महीने की एक बच्ची के इलाज के लिए 14 करोड़ रुपये की आवश्यकता की बात की गई है। बच्ची स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी (SMA) नामक एक दुर्लभ और खतरनाक बीमारी से जूझ रही है, जो अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो 24 महीने की उम्र तक जानलेवा हो सकती है। इस बीमारी में बच्चों की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है और शरीर के अन्य अंगों का कार्य प्रभावित होता है। इस गंभीर स्थिति में बच्ची को बचाने के लिए उसकी मां ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी (SMA) क्या है?
स्पाइनल मस्क्युलर अट्रोफी (SMA) एक जीन से संबंधित बीमारी है, जिसमें मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाओं में कमी आ जाती है। इससे मांसपेशियों की ताकत घटने लगती है और धीरे-धीरे मांसपेशियां कार्य करना बंद कर देती हैं। SMA के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनमें से सबसे गंभीर प्रकार में बच्चे की मौत 2 साल की उम्र से पहले हो सकती है। इस बीमारी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में **ज़ोलजेंस्मा** नामक एक इंजेक्शन को इस बीमारी के इलाज के लिए मंजूरी दी गई है, जो बेहद महंगा है और इसका असर बच्चे की स्थिति को स्थिर करने और मांसपेशियों को फिर से सक्रिय करने में मदद करता है।

क्या है याचिका में मांग?
याचिका में बच्ची की मां ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की है कि उनकी बच्ची को इलाज के लिए ज़ोलजेंस्मा इंजेक्शन की तत्काल आवश्यकता है, जिसकी कीमत 14 करोड़ 20 लाख रुपये है। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) ने इस इंजेक्शन के लिए यही राशि निर्धारित की है, जो एक सामान्य परिवार के लिए जुटाना नामुमकिन है। याचिका में बताया गया है कि इस इंजेक्शन के बिना बच्ची की जान को गंभीर खतरा है, और समय की कमी के कारण किसी प्रकार की देरी से उसकी जान जा सकती है।

क्या कहती है बच्ची के परिवार की स्थिति?
याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि बच्ची के पिता भारतीय वायुसेना में एक नॉन-कमीशंड अधिकारी हैं। वायुसेना में सैनिकों और उनके आश्रितों के इलाज के लिए एक प्रावधान है, लेकिन दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए दी जाने वाली वित्तीय सहायता में इस बीमारी का इलाज शामिल नहीं है। इस कारण से बच्ची के परिवार को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। सैनिकों के बीच क्राउड फंडिंग (आपसी चंदे से राशि जुटाने) के लिए उच्च अधिकारियों ने अनुमति देने से मना कर दिया। याचिकाकर्ता ने उदाहरण देते हुए बताया कि बीकानेर में एक अन्य बच्चे के इलाज के लिए, जो इसी बीमारी से पीड़ित था, उसके शिक्षक पिता ने विभाग से कर्मचारियों के वेतन से कुछ राशि काटने की अनुमति ली थी, ताकि इलाज के लिए आवश्यक राशि जुटाई जा सके। लेकिन वायुसेना के अधिकारियों ने इस तरह की पहल को अस्वीकार कर दिया और सैनिकों को किसी प्रकार का संदेश भेजने की अनुमति भी नहीं दी।

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से क्या राहत मांगी?
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह केंद्र सरकार को आदेश दे कि वह बच्ची के इलाज का खर्च उठाए। साथ ही, उन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि कोर्ट रक्षा मंत्रालय और वायुसेना प्रमुख को निर्देश दे कि वे सैनिकों को क्राउड फंडिंग के लिए संदेश भेजने की अनुमति दें, ताकि बच्ची का इलाज संभव हो सके। याचिकाकर्ता ने यह भी अपील की है कि केंद्र सरकार ज़ोलजेंस्मा इंजेक्शन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए, ताकि इलाज में कोई देरी न हो। याचिका में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून की नज़र में समानता) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का हवाला भी दिया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि अगर समय रहते इलाज नहीं किया गया, तो बच्ची की जान को खतरा हो सकता है, और उसे इस दुर्लभ बीमारी से बचाने के लिए त्वरित कदम उठाए जाने चाहिए। याचिकाकर्ता ने अदालत से यह आग्रह किया है कि वह इस मामले में तुरंत दखल दे और बच्ची को जीवन बचाने का अधिकार दिलवाए।

सुप्रीम कोर्ट का संभावित कदम
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर त्वरित सुनवाई की आवश्यकता जताई और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है कि वह इस गंभीर स्थिति में बच्ची के इलाज के लिए कैसे मदद करेगा। इस मामले में अदालत का निर्णय बेहद महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि यह न केवल एक बच्चे की जिंदगी से जुड़ा है, बल्कि यह देश के स्वास्थ्य और अधिकारों के बुनियादी सिद्धांतों को भी चुनौती देता है।

भारत में दुर्लभ बीमारियों का इलाज और उसकी लागत
इस मामले से एक बार फिर यह तथ्य सामने आया है कि भारत में दुर्लभ बीमारियों का इलाज अत्यधिक महंगा है, और सरकारी योजनाओं के तहत ऐसी बीमारियों के इलाज के लिए वित्तीय सहायता का प्रावधान नहीं किया गया है। ज़ोलजेंस्मा इंजेक्शन की कीमत इतनी अधिक है कि इसे एक सामान्य परिवार के लिए वहन करना संभव नहीं है। यह मुद्दा यह भी उजागर करता है कि सरकारी संस्थाओं और स्वास्थ्य मंत्रालयों को इस तरह की गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। साथ ही, यह भी साबित करता है कि ऐसे मामलों में क्राउड फंडिंग जैसी मदद से इलाज के खर्च को पूरा करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन सरकारी समर्थन का अभाव महसूस किया जा रहा है।