अजमेर
अजमेर शरीफ दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका को लेकर कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए दरगाह पक्ष को नोटिस जारी किया है। ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में संकट मोचन महादेव मंदिर वाली याचिका को कोर्ट ने स्वीकार किया। इस मामले की सच्चाई जानने के लिए कोर्ट ने इसे स्वीकार किया है क्योंकि लंबे समय से इसकी मांग उठ रही थी। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने यह याचिका लगाई और न्यायाधीश जज मनमोहन चंदेल ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किया।
दरगाह कमेटी के कथित अनाधिकृत कब्जा हटाने संबंधी याचिका दो महीने पहले दायकर करी थी।याचिका में दावा किया गया था कि दरगाह की जमीन पर पूर्व में भगवान शिव का मंदिर था और वहां पूजा पाठ होता रहा है। दरगाह परिसर में जैन मंदिर होने का भी दावा किया गया है और याचिका में हरविलास शारदा द्वारा लिखी गई एक पुस्तक का हवाला दिया गया।
इसमें मंदिर होने के प्रमाण का उल्लेख किया गया है कि दरगाह परिसर में बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के अंश हैं। साथ ही एक तहखाना या गर्भ गृह होने की बात की गई और कहा गया है कि वहां शिवलिंग था, ब्राह्मण परिवार उसकी पूजा अर्चना करने का काम करता था। 1991 पूजा स्थल एक्ट यहां इसलिए लागू नहीं होता, क्योंकि दरगाह के अंदर कभी किसी इंसान को पूजा करने के लिए अंदर जाने ही नहीं दिया गया।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया। याचिका हिंदू सेना प्रमुख विष्णु गुप्ता द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि अजमेर शरीफ दरगाह में काशी और मथुरा की तरह एक मंदिर था।
वादी विष्णु गुप्ता के अधिवक्ता योगेश सिरोजा ने अजमेर में संवाददाताओं को बताया कि वाद पर दीवानी मामलों के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई। सिरोजा ने कहा कि दरगाह में एक शिव मंदिर होना बताया जा रहा है। उसमें पहले पूजा पाठ होता था… पूजा पाठ दोबारा शुरू करवाने के लिये वाद सितंबर 2024 में दायर किया गया। अदालत ने वाद स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए हैं। उन्होंने बताया कि इस संबंध में अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कार्यालय-नयी दिल्ली को समन जारी हुए हैं।
हालांकि, अब इसको लेकर सियासत तेज हो गई है। AIMIM सांसद असदुद्दीन औवेसी ने कहा कि यह दरगाह पिछले 800 वर्षों से वहां मौजूद है। नेहरू से लेकर कई प्रधान मंत्री दरगाह पर चादर भेजते रहे हैं। पीएम मोदी भी वहां चादर भेजते हैं। उन्होंने सवाल किया कि बीजेपी-आरएसएस ने मस्जिदों और दरगाहों को लेकर ये नफरत क्यों फैलाई है? निचली अदालतें पूजा स्थल कानून पर सुनवाई क्यों नहीं कर रही हैं? इस तरह कानून का शासन और लोकतंत्र कहां जायेगा? यह देश के हित में नहीं है। मोदी और आरएसएस का शासन देश में कानून के शासन को कमजोर कर रहा है। ये सब बीजेपी-आरएसएस के निर्देश पर किया जा रहा है।
कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि ऐसी बातें पूरे देश में आग लगा देंगी। क्या हो रहा है? पीएम को इस मामले को देखना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को इस मामले पर संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने सवा किया कि आप एक पूरे समुदाय को कहां किनारे करना चाहते हैं? आप उनके धार्मिक स्थलों और संपत्तियों को नहीं छोड़ रहे हैं। आप हमें कहां दरकिनार करना चाहते हैं? किस मस्जिद के नीचे आप मंदिर ढूंढेंगे? कोई सीमा है या नहीं? उन्होंने (केंद्र सरकार) पूजा अधिनियम 1991 को किनारे रख दिया है। क्या वे (भाजपा) अपने राजनीतिक लाभ के लिए पूरे देश को जला देंगे?
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि अजमेर में कोर्ट ने सर्वे के निर्देश दिये। यदि किसी हिंदू ने याचिका दायर की है और अदालत ने सर्वेक्षण का आदेश दिया है, तो समस्या क्या है? मुगलों ने हमारे मंदिर तोड़े। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने तब तक केवल तुष्टीकरण किया। अगर नेहरू ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने के इस अभियान को रोक दिया होता, तो आज हम अदालत में जाने की स्थिति में नहीं होते।
अजमेर शरीफ विवाद पर क्या बोल गए रामगोपाल यादव
इस मामले को लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। विवाद पर अपनी बात रखते हुए समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने जजों को लेकर विवादित टिप्पणी कर दी है। यादव ने एएनआई से बातचीत में कह दिया कि छोटे छोटे जज देश में आग लगवाना चाहते हैं। हाल में उन्होंने रिटायर हो चुके चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को लेकर भी विवादित टिप्पणी कर दी थी और बाद में यूटर्न ले लिया था।
अजमेर शरीफ मुद्दे पर एएनआई से बातचीत में सपा नेता राम गोपाल यादव ने कहा, 'ऐसा है मैंने पहले भी कहा था, इस तरह के छोटे-छोटे जज बैठे हैं जो इस देश में आग लगवाना चाहते हैं। कोई मतलब नहीं है इसका। अजमेर शरीफ पर हमारे प्रधानमंत्री स्वयं चादर भिजवाते हैं। देश दुनिया से लोग वहां आते हैं। उसको विवादों में डालना बहुत ही घृणित और ओछी मानसिकता का प्रतीक है। सत्ता में बने रहने के लिए भाजपा समर्थित लोग कुछ भी कर सकते हैं, देश में आग लग जाए इससे इन्हें कोई मतलब नहीं है। सत्ता में बने रहें बस।' उनसे सवाल किया गया था कि नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा है कि उन्हें इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया है।
राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए एक वाद स्थानीय अदालत में दायर किया गया है। अदालत ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए तीन पक्षकारों को नोटिस जारी किया। वादी विष्णु गुप्ता के वकील योगेश सिरोजा ने अजमेर में बताया कि वाद पर दीवानी मामलों के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई। सिरोजा ने कहा, 'दरगाह में एक शिव मंदिर होना बताया जा रहा है। उसमें पहले पूजा पाठ होता था… पूजा पाठ दोबारा शुरू करवाने के लिये वाद सितंबर 2024 में दायर किया गया। अदालत ने वाद स्वीकार करते हुए नोटिस जारी किए हैं।' उन्होंने बताया कि इस संबंध में अजमेर दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कार्यालय-नयी दिल्ली को समन जारी हुए हैं।