उदयपुर.
मेवाड़ की जनता और मेवाड़ के राजपरिवार के बीच उदयपुर जिले में स्थित भगवान एकलिंग नाथ को मेवाड़ का आराध्य देव कहा जाता है, यहां पर प्रतिदिन भक्तों की बड़ी भीड़ लगती है और पूजा अर्चना की जाती है। मेवाड़ राज परिवार द्वारा भी प्रमुख अवसरों पर मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है। मंदिर की संपूर्ण देखरेख महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन की ओर से की जाती है।
मेवाड़ और मेवाड़ राजपरिवार के लिए एकलिंग जी मंदिर का खास महत्व है। यही नहीं मेवाड़ का महाराजा भी एकलिंग नाथ को माना गया है इसीलिए यहां पर अब तक हुए महाराणा को एकलिंग जी का दीवान कहा जाता है। एकलिंगजी के मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में महाराणा बप्पा रावल ने करवाया था। भगवान एकलिंग उदयपुर से लगभग 20 किमी दूर कैलाशपुरी की पहाड़ियों के बीच स्थित है। एकलिंग का भव्य मंदिर होने के साथ ही इसकी वास्तु कला अद्भुत है।
महाराणा और राजपूतों के कुल देवता
एकलिंग नाथ भगवान महादेव का ही रूप हैं। उनकी प्रतिमा भी शिवलिंग की प्रतीक है। एकलिंग महादेव रूप में मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतों के कुल देवता हैं। इसी के चलते मेवाड़ रियासत में अब तक जो भी महाराणा बना उन्हें एकलिंगजी का दीवान कहा जाता है। यानी मेवाड़ के असली राजा एकलिंगजी भगवान हैं और जो महाराणा बनेंगे, वे एकलिंग जी के प्रतिनिधि के रूप में शासन करेंगे।
एकलिंग जी के दर्शन जरूरी
इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा बताते हैं कि मेवाड़ और मेवाड़ राज्य परिवार में कोई भी मांगलिक या अन्य कार्य एकलिंगजी के यहां माथा टेके बिना पूर्ण नहीं होता। रियासत काल में मेवाड़ के राजाओं द्वारा जितने भी युद्ध किए गए हैं, उन्होंने पहले एकलिंग जी के सामने माथा टेका फिर युद्ध में गए और भगवान एकलिंगनाथ के आशीर्वाद से मेवाड़ की ज्यादातर युद्ध में जीत हुई।
शिवरात्रि को की जाती है पदयात्रा
शिवरात्रि पर्व एकलिंगजी में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे मेवाड़ अंचल से लोग पैदल चलकर एकलिंग नाथ पहुंचते हैं। इसके अलावा श्रवण मास में कावड़ यात्रा भी एकलिंग नाथ पहुंचती है और यहां भगवान का जलाभिषेक किया जाता है। भगवान एकलिंगनाथ का मंदिर पूरे मेवाड़ के लिए आस्था का केंद्र है।