आम आदमी अपने दिन का पूरा समय इन दो जगहों पर बिताता है वो है घर या फिर दफ्तर में। जैसी व्यक्ति की संगति होती है वैसी ही उसकी मति हो जाती है। इसलिए जरूरी होता है कि व्यक्ति हमेशा अपने लिए सही वातावरण चुनना चाहिए, जिससे वह सही पथ पर चले।
आचार्य प्रशांत के अनुसार, एक व्यक्ति किस आधार पर विवाह करता है या फिर कैसी संगति चुनता है। यह महत्व की बात है कि वह व्यक्ति किसके साथ रह रहा है। आप चाहे विवाह करके रह रहे हो या फिर बिना विवाह करके अपनी जीवन व्यय कर रहा हो। ऐसे में व्यक्ति को जरूर हमेशा याद रखना चाहिए कि वह अपने जीवनसाथी का चयन किस आधार पर कर रहा है। हर एक छोटी बात जैसे कि वह व्यक्ति अब से लगातार मेरे कमरे में रहेगा? किसके शब्द लगातार पड़ने लग गए हैं तुम्हारे कानों में? इन चीजों को याद करके ही निर्णय लेना चाहिए। क्योंकि इसी बात पर तुम्हारी जिंदगी या तो बन जाएगी या बिल्कुल बर्बाद हो जाएगी।
आचार्य प्रशांत आगे कहते हैं कि यहीं बात दफ्तर के लिए है कि दिन के आठ से दस घंटे आप किन लोगों की शक्लें देखते हैं या आर अपना बॉस बोलते हो, वो यूं ही है कोई सड़क का आदमी जो तुम्हारी जिंदगी पर अब अधिकार रखने लग गया है तो तुम बर्बाद हो जाओगे। यही बात दफ्तर के माहौल पर और धंधे की प्रकृति पर लागू होती है। तुम्हारी संस्था किस तरह का व्यवसाय करती है और तुम्हारे काम में किस तरह के लोग लगे हुए हैं?
ये कोई छोटी बात है क्या? यही तो जिंदगी है । एक व्यक्ति दिनभर की रोजमर्रा वाली जिंदगी में क्या देख रहा है? क्या सुन रहे हो? क्या खा रहा है? क्या पी रहे हो? क्या सोच रहे हो? किस दिशा में कर्म कर रहे हो? कहां से तुम्हारी प्रेरणाएं आ रही हैं? हर एक चीज को व्यक्ति को साधारण लेना चाहिए। किसी भी चीज को ज्यादा महत्व देने से बचना चाहिए। क्योंकि अगर व्यक्ति इन दो मुद्दों शादी और नौकरी के प्रति अति गंभीर रहेगा। अगर आपने दोनों परीक्षाएं पार कर लीं वो जीवन में उत्तीर्ण हो गया। ऐसे में व्यक्ति को हर काम में सफलता पाने के साथ तनावमुक्त जीवन जिएंगा।