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महिला और पुरुष की शादी की न्यूनतम उम्र में अंतर होना पितृसत्तात्मक व्यवस्था की एक निशानी है: हाई कोर्ट

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प्रयागराज
महिला और पुरुष की शादी की न्यूनतम उम्र में अंतर होना पितृसत्तात्मक व्यवस्था की एक निशानी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि भारत में पुरुष के लिए शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष है और महिला के लिए यह 18 वर्ष है। यह कुछ और नहीं बल्कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था की एक निशानी है। जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डी. रमेश की बेंच ने कहा कि पुरुषों को शादी के लिए तीन वर्ष का अतिरिक्त समय इसलिए दिया गया है क्योंकि वे पढ़ाई कर सकें और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त कर पाएं। अदालत ने कहा कि महिलाओं के लिए स्थिति उलट है और उन्हें इस तरह का कोई अवसर नहीं मिलता है।

बेंच ने कहा, 'पुरुषों को शादी के लिए न्यूनतम आयु में तीन वर्ष का अधिक समय देना और महिलाओं को इससे इनकार करना समानता के विपरीत है। यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था की निशानी है और मौजूदा कानून भी इसे ही आगे बढ़ा रहे हैं। इस व्यवस्था में यह मान लिया गया है कि पुरुष को आयु में बड़ा होना चाहिए और वह ही परिवार की आर्थिक व्यवस्था देखे। वहीं महिलाओं को लेकर माना गया है कि वे सेकेंड पार्टी रहें और उन्हें पहले के जितना दर्जा न मिले। यह वयवस्था किसी भी मायने में बराबरी वाली नहीं है।'

अदालत ने यह टिप्पणियां एक केस की सुनवाई के दौरान की, जिसमें शश्स ने फैमिली कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की थी। परिवार न्यायालय ने उस व्यक्ति की शादी को खारिज करने से इनकार कर दिया था। शख्स का कहना था कि उसका बाल विवाह हुआ था और वह इस शादी से सहमत नहीं है। उसका कहना था कि 2004 में विवाह हुआ था और तब उसकी आयु महज 12 साल ही थी, जबकि पत्नी की आयु 9 साल थी। 2013 में शख्स ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत शादी को खारिज करने की मांग की थी। शख्स ने जब केस दाखिल किया था, तब भी उसकी आयु 10 साल, 10 महीने और 28 दिन ही थी।

क्या कहता है बाल विवाह को लेकर बना कानून
इस प्रावाधन के तहत यदि बाल विवाह हुआ तो उसमें शामिल दो में से कोई भी एक सदस्य शादी खारिज करने की मांग कर सकता है। यही नहीं इसके अनुसार यदि बाल विवाह वाले दोनों सदस्य बालिग होने के दो वर्ष बाद भी ऐसी अपील करते हैं तो उसे माना जा सकता है। इसी मामले में जब पति अदालत पहुंचा तो उसकी पत्नी ने विरोध किया। उसका कहना था कि पति ने जब अपनी शादी को खारिज कराने की मांग की तो वह बालिग था। उसकी उम्र 18 साल से अधिक हो चुकी थी। वह 2010 में ही बालिग हो गया था। यही तर्क जब उसने हाई कोर्ट में दिया तो अदालत ने पुरुष और स्त्री की शादी की न्यूनतम उम्र में अंतर होने पर सवाल उठाया।