नई दिल्ली
समलैंगिक शादियों को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को भी सुनवाई होनी है। इस बीच बुधवार को अदालत में इस दिलचस्प बहस देखने को मिली। सरकार ने साफ कहा कि समलैंगिक शादियों का मसला सुप्रीम कोर्ट को नहीं सुनना चाहिए और इसे संसद के ऊपर ही छोड़ देना चाहिए। सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक शादियों को मान्यता देना एक जटिल मसला है। यदि इसे मंजूरी दी जाती है तो फिर स्पेशल मैरिज ऐक्ट का कोई आधार नहीं रह जाएगा।
उन्होंने LGBTQIA++ की परिभाषा को लेकर भी सवाल उठाते हुए कहा कि हम इनमें से LGBTQIA पर बात कर सकते हैं, लेकिन इसमें से ++ की परिभाषा कैसे तय की जाएगी। सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा कि यदि शादी की परिभाषा बदली जाती है तो फिर 160 कानूनों में संशोधन की जरूरत होगी। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या ऐसे में सुप्रीम कोर्ट 'सुपर संसद' बनकर 160 कानूनों में संशोधन करेगा? उन्होंने सेक्शुअल ओरिएंटेशन की परिभाषा तय करने में जटिलता का भी जिक्र किया। तुषार मेहता ने कहा कि यौन रुचि के आधार पर कुल 72 अलग-अलग ग्रुप हैं।
तुषार मेहता ने कहा कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट के अलावा कई ऐसा कानून हैं, जो शादियों के मसले तय करते हैं। कुल मिलाकर ऐसे 160 कानून हैं, जिनमें महिला और पुरुष के मामलों को लेकर नियम तय हैं। उन्होंने सवाल किया, 'क्या सुप्रीम कोर्ट सुपर संसद बनकर इन कानूनों में संशोधन करेगा? इन सभी नियमों में महिला और पुरुष के मसलों का जिक्र किया गया है। यही बेहतर है कि ऐसे जटिल मामले पर संसद को ही फैसले करने दिया जाए।' उन्होंने कहा कि क्या यह सही रहेगा कि समलैंगिक शादियों पर सुप्रीम कोर्ट समाज पर उसके असर को समझे बिना ही फैसला करे।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि देश के सभी धर्म महिला और पुरुष की शादी को ही मान्यता देते हैं। इसी आधार पर स्पेशल मैरिज ऐक्ट भी बना है। यदि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाती है तो फिर इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। उन्होंने साफ कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मसले से दूर ही रहे तो बेहतर होगा। हालांकि सुनवाई के दौरान ही चीफ जस्टिस साफ कर चुके हैं कि अदालत इस मसले की सुनवाई करेगी।