Home हेल्थ फ्लू या हर्पीस इंफेक्शन का शिकार हुए हैं तो सालों बाद आप...

फ्लू या हर्पीस इंफेक्शन का शिकार हुए हैं तो सालों बाद आप डिमेंशिया के रिस्क की गिरफ्त में आ सकते हैं: शोध

10

फ्लू (flu)ऐसा सीजनल इंफेक्शन है जो ज्यादातर लोगों को हो जाता है. लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि फ्लू, हर्पीस (herpes) संक्रमण या रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट जैसे संक्रमण डिमेंशिया (dementia)के रिस्क को बढ़ा सकते हैं.

जी हां, हाल ही में पब्लिश एक स्टडी में कहा गया है कि फ्लू और हर्पीस जैसे संक्रमण ब्रेन अट्रॉफी और डिमेंशिया से जुड़े हैं और अगर संक्रमण लगातार बने रहें तो डिमेंशिया के रिस्क बढ़ जाते हैं. इस स्टडी में उन जैविक कारकों का भी संकेत दिए गया जो न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज में योगदान करते हैं. नेचर एजिंग में छपी इस स्टडी में अल्जाइमर बीमारी और डिमेंशिया के बारे में एक उपयोगी डेटा प्रदान किया गया है.

फ्लू और हर्पीस इन्फेक्शन से बढ़ सकता है डिमेंशिया
अन्य स्टडी में पता चला है कि फ्लू के शॉट्स और शिंगल्स वैक्सीन के जरिए डिमेंशिया के रिस्क को कम किया जा सकता है. फ्लू और हर्पीस जैसे संक्रमण आगे जाकर स्ट्रोक और दिल के दौरे के भी कारण बन सकते हैं. स्टडी में कहा गया है कि कुछ गंभीर संक्रमण जैसे फ्लू, हर्पीस और सांस की नली का इन्फेक्शन मेंटल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है.

यहां तक कि छोटे मोटे इंफेक्शन भी दिमाग की सोचने और समझने की प्रोसेस को इफेक्ट कर सकते हैं. इससे दिमाग के व्यवहार करने का तरीका भी बदल सकता है. जबकि गंभीर संक्रमण दिमाग की क्षमता और इम्यून रिस्पांस के लिए कतई अच्छा नहीं है. स्टडी में कहा गया है कि ये सोचा जाना कि कोई संक्रमण न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज में बड़ी भूमिका निभा सकता है, फिलहाल संभव नहीं है लेकिन कोरोना महामारी के बाद इस बारे में सोचा जाने लगा है.

वैस्कुलर डिमेंशिया का रिस्क बढ़ता है
इस स्टडी में जिन संक्रमणों की जांच की गई, इनमें फ्लू, हर्पीस, रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और स्किन इंफेक्शन शामिल हैं. ये सभी ब्रेन लॉस यानी ब्रेन अट्रॉफी से जुड़े पाए गए हैं. स्टडी में कहा गया है कि ये संक्रमण तुरंत डिमेंशिया के खतरे को नहीं बढ़ाते हैं. इनके होने के सालों बाद डिमेंशिया और अल्जाइमर के जोखिम बढ़ जाते हैं. ये बढ़ा हुआ रिस्क वैस्कुलर डिमेंशिया से जुड़ा है. वैस्कुलर डिमेंशिया अल्जाइमर के बाद दूसरे सबसे बड़े मनोभ्रंश के रूप में पहचाना जाता है क्योंकि ये दिमाग में खून के रुकने से होता है.