उज्जैन
उज्जैन विकास प्राधिकरण ने उज्जैन को वैश्विक आध्यात्मिक नगर (ग्लोबल स्पिरिचुअल सिटी) बनाने को योजना तैयार की है। ये योजना मोक्षदायिनी शिप्रा नदी से सटी 3062 हेक्टेयर सिंहस्थ भूमि के विकास की है, जिस पर सड़क, पानी, बिजली, सीवरेज का स्थायी काम कराकर आश्रम, स्कूल-कॉलेज और धर्मशाला बनाने के लिए भूखंड आवंटित किए जाएंगे।
इससे साधु-संत और श्रद्धालुओं को होटलों के महंगे किराये से मुक्ति मिलेगी और पर्यटन के साथ रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। यह बात अलग है कि इससे करीब तीन हजार हेक्टेयर खेती का रकबा कम हो जाएगा, लेकिन संबंधित किसान मालामाल होंगे। 2028 में सिंहस्थ नए स्वरूप में लगाने की तैयारी है।
उल्लेखनीय है कि तीन दिन पहले ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सिंहस्थ क्षेत्र में साधु-संतों के लिए आश्रम, स्कूल-कॉलेज और धर्मशाला बनवाने की घोषणा की थी। कहा था कि उज्जैन की पहचान साधु-संतों से है। इनके उज्जैन में ठहरने, कथा-भागवत करने को पर्याप्त रूप से भूमि की आवश्यकता पड़ती है। इसे ध्यान में रखते हुए उज्जैन विकास प्राधिकरण के माध्यम से भूखंड लेकर आश्रम बनाए जा सकेंगे। उज्जैन मास्टर प्लान- 2035 अंतर्गत इस योजना में यदि किसी को आश्रम के लिए पांच बीघा जमीन दी जाती है तो उसमें से चार बीघा जमीन उसे खुली रखनी होगी ताकि वहां कथा, यज्ञ जैसे कार्यक्रम आसानी से हो सकें। परिसर में वाहन भी पार्क किए जा सकें। भूखंडों का व्यावसायिक उपयोग नहीं किया जा सकेगा।
घोषणा पत्र में भी है उल्लेख
भाजपा द्वारा 2023 में संकल्प पत्र के रूप में जारी किए चुनावी घोषणा पत्र में उज्जैन को वैश्विक आध्यात्मिक नगर बनाने का उल्लेख है। सरकार का मानना है कि महाकालेश्वर मंदिर, शिप्रा तट और योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का शिक्षा स्थल महर्षि सांदीपनि आश्रम होने से उज्जैन में पूरे वर्ष श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है।
लैंड पूलिंग योजना के अंतर्गत भूमि का अधिग्रहण कर स्थायी सड़क, नाली, बिजली, पानी की व्यवस्था कराकर भूखंड आवंटित करने की योजना बनाई गई है। भूखंड कितने बड़े होंगे, क्या कोई संस्था या साधु-संत एक से अधिक भूखंड ले सकेगा, इस बारे में नीति अभी तैयार होना शेष है।
यह भी जानिए
वर्ष 2016 और उसके पहले के सिंहस्थ आयोजनों में साधु-संत एवं श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए मेला क्षेत्र में सड़क, पानी, सीवरेज, बिजली की व्यवस्था अस्थायी की जाती रही है। इन व्यवस्थाओं पर उतनी ही राशि खर्च हुई, जितने में स्थायी कार्य होते। पिछली बार सरकार ने 4500 करोड़ खर्च किए थे।