तमिलनाडु
गुटखा पाबंदी मामले में तमिलनाडु सरकार को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली। SC ने राज्य में गुटखा और अन्य तंबाकू आधारित उत्पादों की बिक्री, निर्माण व ढुलाई को प्रतिबंधित करने वाली मई 2018 की अधिसूचना को रद्द करने के मद्रास एचसी के फैसले पर रोक लगा दी। यानी तमिलनाडु में अभी गुटखा पर बैन रहेगा। जस्टिस के.एम. जोसेफ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने हाई कोर्ट के 20 जनवरी के फैसले पर रोक लगाई।
एससी की बेंच ने कहा, 'हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता (तमिलनाडु सरकार) ने पैरा 13 के संबंध में दिए गए फैसले पर रोक लगाने का पर्याप्त आधार पेश किया है।' पीठ ने आगे कहा कि अगर तंबाकू-उत्पादों के निर्माताओं के पास इस बात का पुख्ता आधार है कि उनकी गतिविधियां राज्य सरकार की ओर से जारी अधिसूचना के तहत कवर नहीं की जाती हैं, तो वे इसके निवारण के लिए उपयुक्त मंच से संपर्क कर सकते हैं।
'स्वास्थ्य की देखभाल करने का पूरा अधिकार'
सीनियर वकील कपिल सिब्बल और अतिरिक्त महाधिवक्ता अमित आनंद तिवारी तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है और राज्य सरकार को अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की देखभाल करने का पूरा अधिकार है। सिब्बल ने कहा कि तंबाकू चबाने के कारण कई स्वास्थ्य समस्याएं सरकारी खजाने पर भारी बोझ डालती हैं। शीर्ष अदालत के निर्देश के आधार पर गुटखा और अन्य तंबाकू आधारित उत्पादों की बिक्री, निर्माण और ढुलाई पर प्रतिबंध लगाया गया है।
'सेहत के लिए उतने ही खतरनाक उत्पाद'
गुटखा और पान मसाला के व्यापार में लगी कंपनियों के लिए सीएस वैद्यनाथन सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ता पेश हुए। वैद्यनाथन ने कहा कि सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही इनकी खरीद बिक्री पर अस्थाई पाबंदी लगाई जा सकती है। पूरी तरह से पाबंदी मौजूदा कानूनी फ्रेमवर्क के तहत नहीं लग सकती। तंबाकू उत्पाद के पक्षकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 2006 के उस एक्ट पर आधारित अधिसूचना तो सालों पहले ही बेअसर हो चुकी है। अब उसके आधार पर हर साल पाबंदी की अधिसूचना जारी नहीं कर सकते हैं। इस पर राज्य सरकार के वकील सिब्बल ने कहा कि हर साल यही दलीलें देना भी तो उचित नहीं है, क्योंकि ये उत्पाद साल बीतने के बाद भी जनता की सेहत के लिए उतने ही खतरनाक हैं।