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नर्मदा आंदोलन ने किया सत्याग्रह स्थगित, चर्चा और निर्णय के बाद, उर्वरित पुनर्वास के हर मुद्दे पर पात्रता की जांच या लाभ देना तय हुआ

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धार

19 अप्रैल को, देर शाम तक नर्मदा भवन पर बैठे नर्मदा घाटी के सैकड़ों सत्याग्रही और पांच उपवासकर्ताओं ने 3 दिन बाद धरना- उपवास स्थगित करने का निर्णय लिया।

 सरदार सरोवर के विस्थापितों ने, 37 सालों में ,कानूनी और मैदानी संघर्ष के द्वारा बहुत कुछ पाया। हजारों को मिला वैकल्पिक खेती और मकान के लिए भूखंड का अधिकार! 83 पुनर्वसाहटो का हुआ निर्माण! फिर भी जो पुनर्वास का कार्य बचा हुआ है, उसमें सैकड़ों परिवारों को जमीन नहीं दे पाने पर 60 लाख रुपए का लाभ, 2019 में डूब के वक्त टीनशेड में रखे गये गरीब, दलित, परिवारों की जांच और मकान के लिए पात्रताअनुसार अनुदान ,कुम्हारो को ईट भट्टों के लिए वैकल्पिक भूखंड ,पुनर्वसाहटो पर सभी सुविधाओं का निर्माण, मछुआरों की सहकारी समितियों के संघ को पंजीयन और अधिकार, केवट समाज को नावडीचालन के लिए छोटे घाटों का निर्माण आदि शामिल रहा है।

 इन तमाम मुद्दों पर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के आयुक्त कार्यालय से कुछ निर्णय हुए और कई प्रस्ताव तैयार होकर उसकी प्रति विस्थापित सत्याग्रहीयों को दी गई। शिकायत निवारण प्राधिकरण में न्यायाधीशों की नियुक्ति तथा हर तहसील में पुनर्वास अधिकारी की पदभर्ती पर इंदौर के खंडपीठ /मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने विस्थापितों की याचिका पर 24 अप्रैल तक राज्य शासन से जवाब प्रस्तुत करने कहां है। बिना पुनर्वास डूब से आवास और आजीविका प्रभावित हुए परिवारों के हर आवेदन पर लिखित जवाब देना शुरू हुआ है। आयुक्त महोदय पवन कुमार शर्मा  ने बड़वानी ,धार ,अलीराजपुर और खरगोन के जिलाधिकारियों को विस्थापितों के हर प्रलंबित आवेदन पर लिखित जवाब देने के निर्देश दिये हैं। 2016 से धार तहसील में आबंटित 22 परिवारों की जमीन अतिक्रमित होने के संबंध में जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर, उन्हें जमीन के बदले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश (2017) अनुसार 60 लाख रुपए देने का प्रस्ताव तय हुआ। निसरपुर, कटनेरा जैसे गांवों में पानी से घिरे, बचे हुए परिवारों को पुनर्वास के आधे लाभों  से (मकान के लिए अनुदान) वंचित रखा गया है ,जिसकी जांच और विकल्प पर निर्णय लेना, काफी चर्चा के बाद तय हुआ।

सरदार सरोवर विस्थापितों को हजारों की संख्या और मकान के लिए आबंटित भूखण्डों की रजिस्ट्री न करने से मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट का उलंघन हुआ है। इस मुद्दे पर कई बार आश्वासन देने बाद ,सभी भूखण्डों की रजिस्ट्री करवाने का प्रस्ताव मंजूर हुआ है।

एकलबारा,बिजासन ,बोधवाडा ,करोंदिया, बाजरीखेड़ा, कडमाल जैसे गांव में बचे न्यूनतम परिवारों की 'असामाजिक इकाई' के सिद्धांत पर पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, उस पर भिन्न निर्णय हुए , कुछ प्रस्तावित है ।

उपरोक्त और अन्य पुनर्वास के कार्यों के साथ ही ,नर्मदा आंदोलन ने दी है चेतावनी ,कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के समक्ष राज्य शासन पुनर्वास की सत्य स्थिति प्रस्तुत करें। शिकायत निवारण प्राधिकरण के समक्ष प्रलंबित 7000 शिकायतें एवं विविध स्तरों पर 5.80 लाख रु के लिए प्रलंबित आवेदनों की हकीकत बताये। गुजरात को पुनर्वास की पूरी लागत/ खर्च देने के लिए, नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले अनुसार मजबूर करें।

 आंदोलनकारी किसान -मजदूर- मछुआरे सभी का आग्रह है कि ,नर्मदा नदी का मध्यप्रदेश के क्षेत्र का जल प्रवाह नियंत्रित करे तथा,उध्वह्न परियोजनाओं से तथा बांध के नीचेवास के लिए अधिक पानी छोड़ने से सिंचाई और मत्स्यव्यवसाय बर्बाद न करें। राज्यस्तरीय मछुआरा सहकारी समितियों को जलाशय पर 'संघ' का अधिकार प्रदान करें , तीन राज्यों की एकत्रित 'मत्स्यविकास संस्था' की गैर कानूनी प्रक्रिया से राज्य शासन और स्थानिक मछुआरों का हक छीनना न करें ,यही है आंदोलन का आग्रह!
 मध्य प्रदेश को सरदार सरोवर परियोजना से मात्र बिजली का लाभ मिलना था, वह भी न  मिलते हुए हजारों करोड़ का पूंजीनिवेश, करीबन 7000 करोड़ रु.की बिना भरपाई डूबग्रस्त वनभूमि और शासकीय भूमि तथा विस्थापन और पीढ़ियों पुराने गांवों का विनाश हुआ है । नर्मदा घाटी की शासन को स्पष्ट चेतावनी है कि वह अपना और जनता का हक आंतरराज्य स्तर पर सुरक्षित नहीं रखें ,तो आंदोलन और तेज होगा जरूर!

 इन तमाम मुद्दों पर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के साथ तीन दिनों तक चले संवाद के साथ -साथ , नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को भी घेरकर विस्थापितों ने आवाज  उठाई और सवाल उठाये NCA ने अधिकारियों की अनुपस्थिति में अंतरराज्य मुद्दों पर एवं महाराष्ट्र एवं गुजरात के पुनर्वास पर आवेदन प्रस्तुत किये।