नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण और पराली जलाने के मामले से निपटने के लिए गठित वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को फटकार लगाई। अदालत ने शुक्रवार को कहा कि कमेटी को और अधिक सक्रिय होने की जरूरत है। साथ ही, यह सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए कि पराली जलाने के वैकल्पिक उपकरणों का इस्तेमाल जमीनी स्तर पर हो। एससी ने कहा कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग प्रदूषण और पराली जलाने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों को लेकर रिपोर्ट दाखिल करे।
जस्टिस ए. एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने आज पराली जलाने के मामले पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति ओका ने सवाल करते हुए कहा, 'एक्ट का पालन होता नहीं दिख रहा है। कृपया हमें बताएं कि अधिनियम के तहत किसी हितधारक को एक भी निर्देश जारी किया गया है। क्या इस समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस कदम उठाया गया है? हमें इसका जवाब दिया जाए।'
सब कुछ तो हवा में है, क्या बोला सुप्रीम कोर्ट
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने हलफनामा पढ़कर सुनाया। इसमें पराली संकट से निपटने को लेकर सलाह और दिशानिर्देश जारी करने जैसे कदमों की जानकारी दी गई। मगर, अदालत इन प्रयासों से नाखुश नजर आई। बार एंड बेंच ने जस्टिस ओका के हवाले से कहा, 'सब कुछ तो हवा में है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के राज्यों में जो किया गया है, उसके बारे में हमें कुछ भी नहीं बताया गया।'
प्रदूषण रोकने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी
बीते मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से सवाल-जवाब किए थे। अदालत ने पूछा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठाये जा रहे हैं। मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहीं सीनियर वकील अपराजिता सिंह ने कुछ अखबारों की खबरों का हवाला देते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में पराली जलाना शुरू हो गया है। उन्होंने न्यायालय से सीएक्यूएम से सफाई मांगने का आग्रह किया कि पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। सीएक्यूएम अधिनियम के तहत धान की पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय करने के वास्ते क्या कदम उठाए जा रहे हैं।