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बस्तर के माओवादियों के तरीके आजमा रहे गाजा में हमास के लड़ाके, इजरायल भारत से सीखे

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 नई दिल्‍ली
भारत में रेड कॉरिडोर के क्षेत्रों में रहने वाले बाशिंदों को गुमराह करने, उनके यहां छिपने, सुरक्षा बलों का विरोध करने और उन पर हमले करने की माओवादियों की रणनीति बहुत पुरानी है। यह प्रभावी भी रही है। इस बीच इजरायल के साथ संघर्ष में हमास के लड़ाके गाजा में जिस तरह युद्ध में सफलता अर्जित कर रहे हैं, वह माओवादियों के मानव ढाल के तौर तरीकों से ही प्रेरित दिखाई पड़ती है। 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के ताड़मेटला गांव में एक बड़ा माओवादी हमला हुआ था। इसमें सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे। ताड़मेटला में नक्सलियों ने जवानों के 80 हथियार भी लूट लिए थे। इस घटना के कुछ दिन बाद उसी इलाके के जंगलों में माओवादियों ने मीडिया को बुलाकर लूटे हथियारों की प्रदर्शनी लगाई थी। नक्सलियों ने यह वारदात कैसे अंजाम दी,यह अभी भी एक रहस्य है लेकिन इस बात के साफ़ संकेत मिले कि ताड़मेटला गांव के लोगों का नक्सलियों ने सूचना से लेकर हमले तक मानव ढाल की तरह उपयोग किया था।

इजरायल की ताकतवर सेना गाजा में लगभग 1 वर्ष से युद्ध लड़ रही है। गाजा इजरायल और भूमध्य सागर के बीच स्थित भूमि की एक संकरी पट्टी है। मात्र 41 किमी लंबा और 10 किमी चौड़े क्षेत्र में फैला गाजा 20 लाख से अधिक निवासियों वाला है और पृथ्वी पर सबसे घनी आबादी वाले स्थानों में से एक है। आधुनिक उपकरणों से लैस इजरायली सेना इस छोटे से क्षेत्र में अभी तक हमास को खत्म करने में कामयाब नहीं हो सकी है। अब अल-जौनी स्कूल और घरों पर इजरायल ने हमला किया है जिसमें कई लोग मारे गये हैं।

हमास लड़ाई में कर रहा मानव ढाल का उपयोग

इजरायली डिफेंस फोर्स का कहना है कि वह स्कूल के अंदर से हमले की योजना बना रहे हमास के आतंकवादियों को निशाना बना रही थी। उन्हें सूचना मिली थी कि वे यहां छिपे हुए हैं। वहीं हमास के आतंकियों की बचने की रणनीति लगातार कामयाब हो रही है और हजारों नागरिक इजरायली हमलों में लगातार मारे जा रहे हैं। इससे इजरायल को वैश्विक आलोचना का सामना करना पड़ रहा है और वह भारी दबाव में है। गौरतलब है कि गाजा के अल-शिफा अस्पताल का हमास ने इजराइल पर हमले के लिए खूब इस्‍तेमाल किया और उससे जुड़ी सुरंगों के चित्र दुनिया के सामने भी आये।

दरअसल, हमास इजरायल से संघर्ष में मानव ढाल का भरपूर उपयोग कर रहा है। मानव ढाल का प्रयोग जिनेवा कन्वेंशन के प्रोटोकॉल प्रथम के तहत निषिद्ध है और इसे युद्ध अपराध के साथ-साथ मानवीय कानून का उल्लंघन भी माना जाता है। हमास इससे इंकार करता है लेकिन हकीकत में इसके आतंकी मानव ढाल के रूप में नागरिक स्थलों को चुनते हैं। संघर्ष स्थल के निकट होने के कारण वे इसका बखूबी फायदा उठा रहे हैं। ये अपना काम करके वहां से भाग जाते हैं और बाद में इजरायली हमले में कई निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं। हमास के लड़ाकों का यह तरीका भारत में माओवादी हमलों में कई वर्षों से आजमाया जाता रहा है। भारत में माओवाद को आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताया जाता है और माओवादी सुरक्षाबलों से बचने के लिए मानव ढाल के तरीके कई दशकों से युद्धग्रस्त इलाकों में आजमा चुके हैं।

नक्‍सल‍ियों के लिए बढ़ गई मुश्किल

हाल ही में बस्तर रेंज के आईजी सुंदरराज पी ने छत्तीसगढ़ में माओवादियों के लगातार मारे जाने पर बड़ा खुलासा करते हुए कहा है कि इसका प्रमुख कारण वह मानव ढाल है जिसका उपयोग अब माओवादी नहीं कर पा रहे हैं। सुन्दरम के अनुसार प्रतिबंधित और गैरकानूनी सीपीआई नक्सल संगठन फोर्स से मुठभेड़ के दौरान स्थानीय नक्सली कैडर्स का सहारा लेते थे। इसके बाद बाहरी राज्यों के नक्सली लीडर्स की सहायता लेकर भाग जाते थे। ये एक तरह से कवच के रूप में काम करता था। स्थानीय नक्सली भौगोलिक परिस्थितियों से भलीभांति परिचित होते हैं, ऐसे में बड़े नक्सली नेता जनता के बीच से पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों पर बड़े हमले करने में कामयाब हो जाते थे। वे वारदात को अंजाम देने के बाद भाग जाते थे और स्थानीय नक्सली और सहयोगी लोगों के पुलिस कार्रवाई की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती थी।

कुछ वर्षों से माओवाद के खिलाफ विकास की रणनीति कामयाब रही, छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों ने सामाजिक और विकास संबंधी कार्यों से जनता का दिल जीता। वहीं बड़े माओवादी नेताओं की करतूतों को भी सुरक्षा बलों और पुलिस ने आम जनता के सामने रखा है। इसका नतीजा यह है कि स्थानीय नक्सली कैडर्स और जनता के सामने बाहरी नक्सली कैडर्स बेनकाब होते जा रहे हैं। इसके कारण से नक्सलियों के बीच आपस में विश्वासघात और विद्रोह की स्थिति बढ़ती जा रही है। अब स्थानीय नक्सली और लोग, बाहरी नक्सलियों की मानव ढाल बनने को तैयार नहीं हैं। इसी का नतीजा है कि बस्तर में नक्सलवाद खत्म हो रहा है।

हमास से जंग में इजरायल भारत से सीखे

दूसरी और गाजा में इजरायली सेना आम जनता का विश्वास जीतने की कोई कोशिश नहीं कर रही है। वह हमास के आतंकियों के रुकने और छिपने के स्थानों को चिन्हित कर निशाना बना रही है। हमास के आतंकी इजरायल पर हमला कर सुरक्षित भागने में कामयाब हो रहे हैं और इजरायल को लगातार नाकामी मिल रही है। हमास बस्तर के नक्सलियों के मानव ढाल के तरीकों को आजमा कर इजरायली सेना की नाक में दम किये है जबकि इजरायली सेना को इस स्थिति से निपटने के लिए बस्तर में आजमा जा रहे भारतीय सुरक्षा बलों के तौर तरीके से सीखने की जरूरत है। इजरायल फिलीस्तीन विवाद को खत्म करने के लिए विकास की दीर्घकालीन रणनीति पर इजरायल को काम करना ही होगा। अन्यथा हमास को फिलिस्तीन के लोगों से वैसे ही मदद मिलती रहेगी जैसी माओवादियों को कुछ वर्षों पहले तक रेड कॉरिडोर में मिला करती थी।