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गणपति मूर्ति विसर्जन: एनजीटी के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत न्यायालय

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नई दिल्ली
 उच्चतम न्यायालय ने भगवान गणेश की मूर्ति के विसर्जन में शामिल होने वाले 'ढोल-ताशा' समूहों में लोगों की संख्या 30 तक सीमित करने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एक वकील की दलीलों पर गौर किया जिन्होंने पूछा था कि लोगों की संख्या कैसे सीमित की जा सकती है।

वकील ने अदालत से कहा, ‘उन्होंने कहा है कि ‘ढोल-ताशा’ समूह में केवल 30 लोग ही हो सकते हैं। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि ‘गणपति विसर्जन’ आने वाला है।’

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने एनजीटी के 30 अगस्त के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर यह अंतरिम आदेश पारित किया है। पीठ ने एनजीटी के आदेश पर रोक लगाने के साथ ही, पुणे में गणपति विसर्जन के दौरान ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की मांग करने वाली डॉ. कल्याणी मंडाके व अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। पीठ ने यह आदेश एनजीटी के फैसले के खिलाफ पुणे के एक ढोल-ताशा समूह की याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमित पई ने पीठ से कहा कि ढोल-ताशा का पुणे में सौ वर्षों से अधिक समय से गहरा सांस्कृतिक महत्व रहा है और इसकी शुरुआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी। उन्होंने पीठ से कहा कि एनजीटी के के निर्देश से ऐसे समूह प्रभावित होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ढोल-ताशा समूहों में व्यक्तियों की संख्या सीमित करने के एनजीटी के निर्देश पर रोक लगाई जा रही है। पीठ ने कहा कि ढोल ताशे बजाने दें, ये पुणे की जान है। एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने की मांग को लेकर डॉ. कल्याणी मंडाके की याचिका पर विचार करते हुए गणपति विसर्जन में शामिल ढोल-ताशा समूह में लोगों की संख्या 30 तक सीमित कर दी थी। इसके अलावा भी एनजीटी ने कई निर्देश दिए थे।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘ईमेल और कागजात भेजें, हम अपराह्न दो बजे इस पर विचार करेंगे।’

एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से गणपति विसर्जन में शामिल ढोल-ताशा समूह में लोगों की संख्या 30 तक सीमित कर दी है।

‘गणेश चतुर्थी’ का त्योहार सात सितंबर से शुरू हुआ और यह 10-11 दिन तक मनाया जाता है।

महाराष्ट्र के कुछ भागों में ‘ढोल-ताशा’ समूह पारंपरिक त्योहारों का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।