नागपुर
उत्तरप्रदेश के बरेली में स्थित पशु विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने पिछले हफ्ते दावा किया था कि गौमूत्र में ई-कोली समेत 14 तरह के हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं। जिसके चलते सीधे गोमूत्र पीना मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। उनके इस दावे को नागपुर के पारशिवानी में स्थित 'गौविज्ञान अनुसंधान केंद्र' ने खारिज किया है।
भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) देश का एक प्रसिद्ध पशु अनुसंधान संगठन है। इस संस्थान के भोजराज सिंह समेत तीन पीएचडी छात्रों ने यह शोध किया है। हालांकि भारत में गौमूत्र को पवित्र माना जाता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष मानव उपभोग के लिए उपयुक्त या सुरक्षित नहीं है। गाय, भैंस, बैल के मूत्र में कई हानिकारक बैक्टीरिया होते हैं। इस शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बैक्टीरिया इंसान के पेट में जाकर कई तरह की बीमारियों के संक्रमण को बढ़ा सकते हैं। भारत में कई विशेषज्ञ आईवीआरआई के इस दावे से सहमत नहीं हैं।
इस मामले में नागपुर जिले के पारशिवानी में स्थित गौविज्ञान अनुसंधान केंद्र ने बरेली के शोधकर्ताओं के इस दावे को गलत बताया है। इस बारे में अपनी राय रखते हुए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के पूर्व सदस्य सुनील मानसिंहका ने कहा कि, गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र बिते 28 साल से गौमूत्र पर शोध कर रहा है। गौमूत्र कई बीमारियों की दवा है। इसमें नीरी और अन्य संस्थाओं द्वारा 5 'पेटेंट' दिए गए हैं। देश के कई चिकित्सक और आयुर्वेदिक डॉक्टर भी अपने रोगियों को गौमूत्र की दवा लेने की सलाह देते हैं। इससे कई मरीज ठीक हो चुके हैं। गौमूत्र कैंसर जैसी बीमारी का भी रामबाण इलाज है।
मानसिंह ने कहा कि, बरेली संस्था का गौमूत्र स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने का दावा पूरी तरह झूठा है। भारतीय सभ्यता में ऋषि-मुनि तथा वेदों और पुराणों में गौमूत्र, दूध और दही के महत्व का उल्लेख किया गया है। नतीजतन गौमूत्र के महत्व को नकारना गलत है। मौजूदा समय में भारत के 5 से 10 लाख लोग रोजाना गौमूत्र और उससे बनी अन्य दवाओं का सेवन करते हैं। मानसिंहका ने कहा कि गौमूत्र से आज तक किसी का नुकसान नहीं हुआ, बल्कि फायदा हुआ है।