-अब हाथ की कमी महसूस नहीं होने देंगे सीएसआईआर-एनपीएल के वैज्ञानिक
नई दिल्ली
राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कृत्रिम हाथ विकसित किया है, जो दिव्यांगों के लिये वरदान साबित होगा। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह कृत्रिम हाथ दिव्यांगों के जीवन को सहज बनाएगा।
इस परियोजना से जुड़े एनपीएल के वैज्ञानिक डॉक्टर आलोक प्रकाश ने बातचीत में कहा कि उनकी टीम ने एक कृत्रिम हाथ बनाया है, उससे लोगों की समस्याएं निश्चित रूप से कम होंगी। इसके माध्यम से दिव्यांग अपने दैनिक कार्यों को स्वयं करने में सक्षम होंगे।
बातचीत के दौरान डॉक्टर आलोक ने कहा कि अभी कृत्रिम हाथ बनाने की दिशा में जो कंपनियां काम कर रही हैं, वह बहुत महंगी दरों पर कृत्रिम हाथ बना रही हैं। एक ऑटोमेटिक कृत्रिम हाथ की कीमत दो लाख रुपये से भी अधिक है।
आगे वे कहते हैं कि इस चुनौती को स्वीकार कर एनपीए ने काफी सस्ता कृत्रिम हाथ तैयार किया है, जिसे हैदराबाद की एक कंपनी के साथ मिलकर अगले एक वर्ष के भीतर बाजार में उतार दिया जाएगा। डॉ. आलोक ने कहा कि इस परियोजना में अनुराग कटियार, मांगेराम सहित संस्थान के कई अन्य वैज्ञानिकों ने सहयोग दिया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में करीब डेढ़ करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके शरीर का कोई-न-कोई अंग कटा हुआ है। इनमें 45 लाख लोग ऐसे हैं, जिनके बांह का निचला हिस्सा क्षतिग्रस्त है। ऐसे लोगों की मदद के लिये एनपीएल की पहल सराहनीय है।
इसी संदर्भ में एक सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर आलोक ने कहा कि कृत्रिम हाथ ठीक वैसे कार्य करता है, जैसे हमारे हाथ काम करते हैं। कृत्रिम हाथ को चलाने के लिए एनपीएल ने हॉल मायोग्राफी नामक सेंसर तैयार किया है, जो कटे हुए हाथ के बचे हिस्से में ऐसी जगह लगाया जाता है, जहां संकुचन होता है। यह यंत्र मांसपेशियों के संकेत को समझकर कृत्रिम हाथ के संचालित होने में मदद करता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर के संचालन का अपना तंत्र है। इस तंत्र को समझने और उसका पालन कराने के लिए हॉल मायोग्राफी यंत्र बनाया गया है। डॉ. आलोक ने बताया कि रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कॉर्ड) दिमाग का संदेश शरीर के अन्य अंगों खासकर हाथों और पैरों तक पहुंचाती है। ऐसे में हाथ जहां से कटा होता है, वहां के बचे हिस्से के ऊतकों तक स्पाइनल कॉर्ड दिमाग का संदेश पहुंचाता है। हाथ के इसी बचे हिस्से पर हॉल मायोग्राफी यंत्र को फिट किया जाता है, जिसके बाद यंत्र दिमाग के संकेत को समझकर कृत्रिम हाथ से कार्य करवाता है।
उल्लेखनीय है कि दुनियाभर में करीब 1.5 करोड़ ऐसे लोग हैं, जिनका कोई-न-कोई अंग कटा हुआ है, जिससे वे दिव्यांग हो गए हैं। इनमें से करीब 30 फीसदी यानी 45 लाख दिव्यांग ऐसे हैं, जिनके बांह का निचला हिस्सा क्षतिग्रस्त है। इनमें से अधिकांश विकासशील देशों में रहते हैं। भारत में 7.5 लाख लोग ऐसे हैं, जो हाथ से दिव्यांग हैं। डब्ल्यूएचओ और आइएसपीओ के मुताबिक कोहनी के निचले हिस्से की दिव्यांगता का प्रमुख कारण कोई-न-कोई दुर्घटना या चोट है।