Home मध्यप्रदेश महेश्वर में ढहने से बच गई ऐतिहासिक धरोहर: 17वीं शताब्दी में मराठाओं...

महेश्वर में ढहने से बच गई ऐतिहासिक धरोहर: 17वीं शताब्दी में मराठाओं ने करवाया था ज्वालेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार

17

भोपाल
खरगोन जिले के महेश्वर स्थित ऐतिहासिक प्राचीन धरोहर ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य के लिए जिला प्रशासन, जन-भागीदारी और कमिश्नर इंदौर श्री दीपक सिंह की रुचि रंग ला रही है। 80 लाख रूपये की राशि जन-भागीदारी से एकत्र कर इस  प्राचीन धरोहर का जीर्णोद्धार कार्य तेज गति से किया जा रहा है, जो क्षेत्र में जन-भागीदारी की अनूठी मिसाल बन रहा है। सामूहिक प्रयासों की यह पहल प्राचीन विरासत को लंबे समय तक संजोए रखने के सपने को मूर्त रूप प्रदान कर रही है। नदी के तट पर स्थित यह ऐतिहासिक धरोहर प्राचीन होने की वजह से ढहने की कगार पर आ गई थी।         

मालवा अंचल का महेश्वर एक धार्मिक, ऐतिहासिक, कलात्मक और स्थापत्य कला का केंद्र है। एक स्थानीय कहावत है नर्मदा नदी से निकलने वाला हर कंकर शंकर का रूप होता है। पवित्र रेवा नदी के किनारे बने इस शहर के प्रत्येक मंदिर का वर्णन पुराणों, शास्त्रों और कविताओं में विस्तार से किया गया है। नर्मदा तट पर हजारों मंदिर है, लेकिन उनमें से कुछ मंदिरों का विशेष स्थान है, जिसमें ज्वालेश्वर महादेव मंदिर का अपना विशेष स्थान रहा है। इंदौर कमिश्नर श्री दीपक सिंह ने इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोने के लिए रुचि ली और जिला प्रशासन और क्षेत्रवासियों के सहयोग से आज इस प्राचीन धरोहर का जीर्णोद्धार कार्य लगभग पूर्णता की ओर है। जन-सहयोग से करीब से इस मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य ऐतिहासिक धरोहर को नया और दीर्घ जीवन देने वाला सिद्ध हुआ है।

वर्तमान में जो मंदिर दिखाई देता है उसका जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में मराठों के मार्गदर्शन में किया गया था, जिसमें विस्तृत नक्काशीदार शिखर, दरवाजे एवं खिड़कियां तथा जटिल नक्काशीदार पैनल जैसे विशिष्ट वास्तु शिल्प का उदाहरण यहां देखने को मिलता है। यह मंदिर उत्कृष्ठ घाटों और होलकर वास्तुकला का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। इस स्थान से महेश्वरी नदी और नर्मदा नदी का संगम भी देखा जा सकता है।

जन-सहयोग के एकत्र 80 लाख रुपये से हो रहा जीर्णोद्धार कार्य
महेश्वर नगर के नर्मदा तट स्थित प्राचीन ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार का लगभग पूरा हो चुका है। जीर्णोद्धार कार्य के लिये जन-सहयोग से एकत्र करीब 80 लाख रुपए खर्च हुए हैं। मंदिर को नर्मदा नदी की बाढ़ से बचाने के लिए पत्थरों से 110 मीटर लंबाई के साथ 24 मीटर ऊंची व 4 मीटर चौड़ी गैबियन वाल बनाई गई है। जीर्णोद्धार कार्य में करीब एक करोड़ 50 लाख रुपए खर्च का अनुमान है। मंदिर निर्माण में लगने वाली सामग्री व धनराशि जन-सहयोग से जुटाने को लेकर स्थानीय स्तर पर लगातार प्रयास किये जा रहे हैं।