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बीजामंडल में हिंदुओं को नहीं मिली पूजा करने की अनुमति; ASI ने बताई वजह

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 विदिशा
 मध्य प्रदेश के विदिशा जिला प्रशासन ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की अधिसूचना का हवाला देते हुए शुक्रवार को नागपंचमी के मौके पर हिन्दुओं के पूजा करने के लिए 11वीं सदी के बीजामंडल को खोलने से इनकार कर दिया है।

हिंदुओं के एक समूह ने जिलाधिकारी बुद्धेश कुमार वैद्य को शहर के बीचों-बीच स्थित इस स्थल को नागपंचमी पर खोलने के लिए ज्ञापन सौंपा था। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। जिलाधिकारी ने उनकी याचिका एएसआई को भेज दी, जिसने 1951 की गजट अधिसूचना का दो अगस्त को हवाला देते हुए कहा कि बीजामंडल मंदिर नहीं, बल्कि मस्जिद है।

एएसआई है ढांचे का संरक्षक

जिलाधिकारी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि एएसआई इस ढांचे का संरक्षक है, इसलिए उन्होंने मामले पर निर्णय लेने के लिए ज्ञापन उसे भेजा था। ज्ञापन सौंपने वाले हिंदू समूह के नेता शुभम वर्मा ने निराशा व्यक्त करते हुए एजेंसी से कहा, 'हम पिछले 30 साल से नागपंचमी पर वहां (ढांचे के बाहर) पूजा करते आ रहे हैं, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि यह मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है।'

वर्मा ने जिलाधिकारी के पत्र और एएसआई की गजट अधिसूचना को दिखाते हुए कहा कि एएसआई द्वारा इसे मस्जिद बताए जाने से हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं।

हिंदुओं ने मांगी पूजा की अनुमति

हालांकि, इस साल हिंदू समूहों ने 9 अगस्त को परिसर में प्रवेश करने और पूजा करने की अनुमति मांगी। विदिशा कलेक्टर बुद्धेश वैश्य ने उनके अनुरोध को एएसआई को भेज दिया, जिसने 1951 के राजपत्र अधिसूचना का हवाला देते हुए इस स्थल को 'बीजामंडल मस्जिद' के रूप में वर्गीकृत किया। कलेक्टर ने तब पूजा की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिससे हिंदू समूहों में आक्रोश फैल गया। वे एएसआई द्वारा इस स्थल को मस्जिद के रूप में वर्गीकृत करने का विरोध करते हैं, उनका दावा है कि यह 1972 से हिंदू पूजा स्थल रहा है।

विधायक चाहते हैं सर्वेक्षण

वहीं, विदिशा विधायक 'मंदिर के स्वामित्व' को साबित करने के लिए सर्वेक्षण चाहते हैं वे एएसआई द्वारा इस स्थल को मस्जिद के रूप में वर्गीकृत करने का विरोध करते हैं, उनका दावा है कि यह 1972 से हिंदू पूजा स्थल रहा है।

भोपाल से 60 किमी दूर

भोपाल से लगभग 60 किमी और सांची स्तूप से बमुश्किल 10 किमी दूर विजय सूर्य मंदिर/बीजामंडल मस्जिद स्थल का इतिहास उथल-पुथल भरा रहा है। एएसआई-भोपाल सर्किल की वेबसाइट का कहना है कि मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर के खंडहरों पर किया गया था। हालांकि, यहां स्तंभ पर पाए गए शिलालेखों में से एक का कहना है कि यह देवी चर्चिका का मंदिर था।
सूर्य देव के सम्मान में बनाया गया था यह मंदिर

ऐसा माना जाता है कि इसे 11वीं-12वीं शताब्दी में सूर्य देव के सम्मान में बनाया गया था। मुगल शासन के दौरान, विशेष रूप से औरंगजेब के शासनकाल में मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था, जिसके बाद 17वीं शताब्दी में इसे मस्जिद के रूप में पुनर्निर्मित किया गया था। हालांकि, मराठा शासन के दौरान मस्जिद को दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया गया और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह स्थल जीर्ण-शीर्ण हो गया।
हिंदू महासभा के नेतृत्व में किया गया आंदोलन

1934 में मंदिर के अवशेषों की खोज ने हिंदू महासभा के नेतृत्व में इसके संरक्षण के लिए एक आंदोलन को जन्म दिया। इसका एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय कार्यालयों में हिंदू महासभा के उम्मीदवार चुने गए। तब से, मंदिर को साल में केवल एक बार नाग पंचमी पर पूजा के लिए खोला जाता है। 1965 में सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के लिए, तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा ने मुसलमानों के लिए एक अलग ईदगाह की स्थापना की।

पीएम मोदी से की मांग

फिर से विवाद उठने के साथ, हिंदू संगठनों ने पीएम नरेंद्र मोदी से 'बीजामंडल विजय मंदिर' को नियमित पूजा के लिए फिर से खोलने की अपील की है। कलेक्टर बुद्धेश वैश्य ने स्थानीय मीडिया को बताया कि सब कुछ एएसआई नियमों के अनुसार किया जाएगा। मुस्लिम प्रतिनिधियों ने विवाद पर मीडिया से बात करने से परहेज किया।

विदिशा विधायक ने की यह मांग

वहीं, विदिशा के भाजपा विधायक मुकेश टंडन ने मंदिर के स्वामित्व को स्थापित करने के लिए एक सर्वेक्षण का प्रस्ताव दिया है। उनका मानना है कि इस सर्वेक्षण से मंदिर की स्थिति की पुष्टि होगी। साथ ही संभावित रूप से 'पूजा के लिए इसके पूर्ण उपयोग की बहाली' होगी। टंडन ने मुस्लिम समुदाय के रुख को स्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने 'भूमि पर कोई विवाद नहीं जताया है'। उन्होंने समुदायों के बीच आपसी सम्मान पर प्रकाश डाला। साथ ही जिला प्रशासन द्वारा मुस्लिम धार्मिक प्रथाओं, विशेष रूप से ईद पर, को समायोजित करने के प्रयासों का हवाला दिया।

हिंदुओं में पैदा कर दी है चिंता

उन्होंने कहा कि एएसआई द्वारा मंदिर पर लगाए गए ताले ने हिंदुओं में चिंता पैदा कर दी है। विधायक ने कहा कि एएसआई का कहना है कि ताला वहां संग्रहित कुछ मूर्तियों की सुरक्षा के लिए है। स्मारक संरक्षण के लिए 1951 में स्थापित कानूनी ढांचे का हवाला देते हुए टंडन ने कहा कि आपके नियमों में ताला लगाने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि ताला के बारे में भ्रम को दूर करने के लिए जिला प्रशासन के साथ एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें एएसआई से इसे खोलने का आग्रह किया गया था, खासकर नाग पंचमी पूजा के दौरान।
विधानसभा में उठाएंगे इसे

विधायक इस मुद्दे को विधानसभा में उठाएंगे। साथ ही पीएम मोदी और मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से मिलने के लिए दिल्ली जाने के लिए एक टीम बना रहे हैं। विधायक ने अप्रैल 1992 में इसी तरह की स्थिति का जिक्र किया, जब विरोध प्रदर्शन के बाद एएसआई और जिला अधिकारियों के साथ सफल बातचीत हुई थी, जिसके बाद 11 लोगों की टीम को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने कहा कि हिंदू परिवार एएसआई द्वारा लगाए गए किसी प्रतिबंध के बिना इस स्थल पर पूजा करना जारी रखे हुए हैं।