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समलैंगिक विवाह, सुप्रीम कोर्ट और सरकार, क्या है पूरा मामला; पढ़ें विस्तार से

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 नई दिल्ली

समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग करती याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करने जा हा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संवैधानिक बेंच इस मामले पर मंथन करने जा रही है। अब सवाल है कि आखिर यह मुद्दा है क्या और यह शीर्ष न्यायालय के दरवाजे तक कैसे पहुंचा।

पहले मुद्दा समझें
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। तब से ही समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग जोर पकड़ रही है। कहा जा रहा है कि याचिकाकर्ता इसके जरिए समाज में LGBTQIA+ समुदाय के साथ भेदभाव खत्म करने की बात करते हैं। बीते साल 25 नवंबर को दो गे कपल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग की। इसके बाद अदालत की तरफ से नोटिस जारी किया गया था।

समर्थन में क्या है तर्क
दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) याचिका के समर्थन में है। आयोग ने सरकार से समलैंगिक परिवार इकाइयों को प्रोत्साहित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग भी की है। उनका कहना है, 'कई स्टडीज में यह तर्क दिया गया है कि समलैंगिक जोडे़ अच्छे माता-पिता बन सकते हैं…। 50 से ज्यादा ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक जोड़ों को कानूनी तौर पर बच्चा गोद लेने की अनुमति है।'
इसके अलावा इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी (IPS) भी इसके समर्थन में आ गई है। याचिकाकर्ताओं ने संविधान के आधार पर भी कई अधिकारों की मांग की है।

कौन से तर्क हैं खिलाफ
अब केंद्र सरकार लगातार इसके विरोध में रही है। हाल ही में शीर्ष न्यायालय में इसे 'विनाश' की वजह बताया और इसे शहरी एलीट विचार करार दिया था। केंद्र का कहना है कि याचिकाकर्ता समलैंगिक विवाहों की मांग मूल आधारों के तौर पर नहीं कर सकते। जमात उलेमा-ए-हिंद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसे संगठन भी समलैंगिक विवाह के खिलाफ हैं।