काठमांडू
नेपाल के नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली अपनी भारत विरोधी नीतियों के लिए जाने जाते रहे हैं। ओली ने ही चीनी राजदूत के इशारे पर नेपाल का नया नक्शा जारी किया था जिसमें भारतीय इलाकों लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को अपना बताया था। प्रचंड को सत्ता से हटाकर ओली एक बार फिर से नेपाल के नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। वहीं केपी ओली के आने से उत्साहित चीन ने नेपाल पर दबाव बढ़ा दिया है कि वह अपने कर्ज के जाल में फंसाने वाले बीआरआई प्रॉजेक्ट में शामिल हो। नेपाल में चीन के राजदूत लगातार धमकाने वाले बयान देते रहते हैं। इस बीच पीएम ओली चीनी ड्रैगन की चाल से निपटने के लिए अब भारत की शरण में पहुंच गए हैं। आइए समझते हैं पूरा मामला…
रिपोर्ट के मुताबिक केपी ओली की पार्टी सीपीएन यूएमएल ने कहा है कि नेपाल बीआरआई पर पीछे नहीं हटेगा लेकिन भारत की संवेदनशीलताओं का पूरा ध्यान रखा जाएगा। उसने कहा कि हमारा मानना है कि भारत का विरोध करके न तो नेपाल प्रगति हासिल कर सकता है और न ही नेपाली लोगों का हित बढ़ाया जा सकेगा। नेपाल के अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नजर रखने वालों का कहना है कि चीन के बीआरआई प्रॉजेक्ट ने ओली को फंसा दिया है। नेपाल ने इस पर साल 2017 में इस समझौते पर साइन किया था। ओली इस बार भारत समर्थक पार्टी नेपाली कांग्रेस की मदद से सत्ता में आए हैं। चीन लगातार अब नेपाल सरकार पर दबाव बना रहा है कि वह बीआरआई पर आगे बढ़े।
भारत के साथ दोस्ती चाहते हैं ओली
विश्लेषकों का कहना है कि वहीं ओली अब भारत के साथ रिश्ते सुधारना चाहते हैं जो अपने पड़ोस में चीन के बढ़ते प्रभाव को खतरे के रूप में लेता है। नेपाली सेना से रिटायर रणनीतिक विश्लेषक मेजर जनरल बिनोज बासनयत ने कहा कि बीआरआई अभी चर्चा में बना रहेगा लेकिन ओली के राज में इसे बहुत गति नहीं मिलने जा रही है। इसकी वजह ओली की गठबंधन सरकार है। उन्होंने कहा कि चीन की ओर से नेपाल सरकार पर बीआरआई को लागू करने को लेकर दबाव बना रहेगा लेकिन ओली के गठबंधन सहयोगी नेपाली कांग्रेस इसको लेकर एकदम अलग सोचती है।
बिनोज ने कहा कि नेपाली कांग्रेस लोन की मदद से कोई भी बीआरआई प्रॉजेक्ट आगे नहीं बढ़ाना चाहती है। नेपाली कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह चीन से ग्रांट या सॉफ्ट लोन के खिलाफ नहीं है जिसमें लंबे समय में कम ब्याज पर पैसा लौटाना होता है। जून महीने में चीन के उप विदेश मंत्री नेपाल आए थे ताकि बीआरआई को आगे बढ़ाया जा सके लेकिन ऐसा हो नहीं सका। नेपाल और चीन के बीच शर्तों को लेकर कोई समझौता नहीं हो पाया। तत्कालीन पीएम प्रचंड ने भारत की चिंताओं को देखते हुए बीआरआई को लागू करने को मंजूरी नहीं दी। विश्लेषकों का कहना है कि ओली खुद भी नहीं चाहते हैं कि नेपाल चीन से लोन लेकर बीआरआई को लागू करे।