रांची/लोहरदगा.
कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने कहा कि जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग ‘सरना धर्म’ का कॉलम रखने की मांग संवैधानिक है जिसे केंद्र सरकार को मानना होगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो यह मौलिक अधिकार का हनन होगा। एक बयान में उन्होंने यह सवाल भी किया जब जानवरों की गणना हो सकती है तो आदिवासियों की अलग गणना क्यों नहीं हो सकती?
झारखंड के लोहरदगा से सांसद ने कहा, 'एक तरफ हम धार्मिक स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार मानते हैं, लेकिन जब आदिवासियों के आस्था के अधिकार की बात आती है तो कोई कदम नहीं उठाया जाता।' सुखदेव भगत ने कहा, 'जनगणना (फॉर्म में) में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन और पारसी धर्मों का कॉलम है। ऐसे में इसमें सरना का कॉलम भी हो सकता है।' उन्होंने आगे कहा, 'सरना धर्म के लिए अलग कॉलम की मांग नहीं मानना मौलिक अधिकार का हनन है। जब जानवरों की गणना हो सकती है तो हमारी अलग गणना क्यों नहीं हो सकती?' कांग्रेस सांसद ने आगे कहा, 'यह एक संवैधानिक मांग है। हमें विश्वास है कि आज नहीं तो कल, सरकार को यह मांग माननी पड़ेगी। यह मांग मैंने लोकसभा में उठाई है।' कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि केन्द्र में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी आदिवासियों के अस्तित्व को नहीं मानता है।
भगत ने चार दिन पहले 22 जुलाई को भी संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह सरना धर्म कोड का मुद्दा उठाया था। लोकसभा में सदन की कार्यवाही के दौरान उन्होंने कहा था, 'करोड़ों आदिवासी देश में हैं, लेकिन उनकी जनगणना के लिए अलग से कॉलम नहीं है। इसलिए सरकार सरना धर्म कोड लागू करे।' इसके अलावा अपनी इस मांग को लेकर वे संसद के बाहर भी हाथों में दो प्लेकार्ड लिए नजर आए थे। जिसमें से एक पर लिखा था, 'जनगणना में सरना धर्म कोड लागू करो' वहीं दूसरे प्ले कार्ड में लिखा था, 'आदिवासी प्रकृति के पुजारी हैं, इनकी आस्था, परम्परा और संस्कृति की रक्षा के लिए 'सरना धर्म' जनगणना में शामिल करो। जंगल में बाघ/शेर की गणना हो सकती है तो आदिवासियों की धार्मिक पहचान की क्यों नहीं?'