जयपुर.
पीढ़ी के परिवर्तन दौर से गुजर रही राजस्थान भाजपा अब दिल्ली की प्रयोगशाला बन गई प्रतीत होती है। भजनलाल शर्मा के बाद एक और लो प्रोफाइल नेता मदन राठौड़ को प्रदेशाध्यक्ष बनाकर सत्ता और संगठन में समन्वय बनाने की कोशिश की गई है। पिछले 20 सालों में राजस्थान भाजपा में ऐसा पहली बार होता नजर आ रहा है, जब सत्ता और संगठन में दोनों जगह एक समान कद के लोगों को लगाया गया है। न तो सीएम भजनलाल बड़े कद के नेता हैं और न ही मदन राठौड़ कद्दावर कहे जा सकते हैं।
मोदी का यह फार्मूला राजस्थान में पॉवर बेलेंसिंग के लिए है, क्योंकि पिछले 20 सालों में राजस्थान में हमेशा सत्ता संगठन पर हावी रही है। इन 20 सालों में राजस्थान की बीजेपी 8 अध्यक्ष देख चुकी है, जिनमें पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, महेश शर्मा, ओम माथुर, अरुण चतुर्वेदी, अशोक परनामी, मदनलाल सैनी, सतीश पूनिया, सीपी जोशी शामिल हैं। अब नौंवे अध्यक्ष मदन राठौड़ बने हैं। वसुंधरा राजे कभी संघ और दिल्ली की चहेती नेता नहीं रहीं।
2003 वसुंधरा बनाम ललित किशोर चुतर्वेदी
दिसंबर 2003 में वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं। इस दौरान बीजेपी के स्टालवार्ट नेता ललित किशोर चतुर्वेदी ने संगठन की कमान संभाली। राजे अनुभव में उनसे बहुत कम थीं, दोनों के बीच कभी नहीं बनी। राजे और संगठन के संबंध लगातार बिगड़ते रहे। आखिर में 2006 में चतुर्वेदी की विदाई हो गई और महेश शर्मा को नया अध्यक्ष बना दिया गया।
राजे के प्रभाव से नहीं निकल पाए महेश शर्मा
हालांकि महेश शर्मा संघ पृष्ठभूमि से आते थे लेकिन तब तक राजे का कद बहुत बड़ा हो चुका था। महेश शर्मा पूरी तरह राजे के प्रभाव में रहे लेकिन इस रिश्ते ने संघ से लेकर दिल्ली तक को परेशान कर दिया।
ओम माथुर और वसुंधरा में घमासान, माथुर की विदाई
महेश शर्मा के बाद 2008 में ओम माथुर की संगठन में बतौर अध्यक्ष एंट्री हो गई लेकिन वसुंधरा राजे उन्हें पसंद नहीं करती थीं। ओम माथुर पर दिल्ली और संघ दोनों की छाप थी। विधानसभा चुनावों में टिकट बंटवारे और विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे की हार के बाद पार्टी में घमासान छिड़ गया। राजे और माथुर के बीच टकराव का खामियाजा भाजपा को लोकसभा चुनावों में भी उठाना पड़ा। साल 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में राजस्थान में भाजपा महज 4 सीटों पर सिमट गई। हार की गाज ओम माथुर पर गिरी और महज एक साल में अध्यक्ष पद से उनकी विदाई हो गई।
अरुण चतुर्वेदी-राजे से विवाद दिल्ली तक पहुंचा
ओम माथुर के बाद अरुण चतुर्वेदी को राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया। अब राजस्थान में बीजेपी सत्ता में नहीं थीं लेकिन नेता प्रतिपक्ष का पद था। हालांकि दिल्ली से तू-तू, मैं-मैं के बाद राजे ने नेता प्रतिपक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन संगठन पर उनका दबदबा कायम रहा क्योंकि बीजेपी के 78 विधायकों में से अधिकतर का समर्थन वसुंधरा के पास था।
वसुंधरा के समर्थक अशोक परनामी
दिसंबर 2013 में वसुंधरा राजे फिर से राजस्थान की सत्ता की कमान संभाल चुकी थीं। अब उन्होंने अपनी पसंद से अशोक परनामी को बीजेपी का अध्यक्ष नियुक्त करवा लिया। अब वसुंधरा राजे का प्रभाव अपने चरम पर था। संगठन पूरी तरह उनके कब्जे में था। हालांकि दिल्ली में भी इस दौरान मोदी सरकार सत्ता में आ चुकी थी लेकिन राजे का प्रभाव कम नहीं हुआ।
वसुंधरा के वीटो पर अटके रहे मदनलाल सैनी
परनामी के जाने के बाद बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह यहां अपनी पसंद से अध्यक्ष लगाना चाहते थे लेकिन वसुंधरा अड़ गईं। इसके चलते राजस्थान में 70 दिनों तक नए अध्यक्ष की तैनाती नहीं हो सकी। आखिर में वसुंधरा की सहमति के बाद मदनलाल सैनी को 2018 में राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया।
सतीश पूनिया- पूरे कार्यकाल में वसुंधरा से नहीं बनी
वसुंधरा के सत्ता से बाहर होने के बाद राजस्थान बीजेपी में सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाया गया। पूनिया और राजे के बीच पूरे कार्यकाल में तलवारें ही खिंची रहीं। इसके चलते राजस्थान की बीजेपी दो खेमों में बंट गई क्योंकि अब भी ज्यादातर विधायक वसुंधरा के कहे को नरजअंदाज करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। हालांकि पूनियां ने संगठन को वसुंधरा के प्रभाव से निकालने की भरसक कोशिश जरूर की।
सीपी जोशी- सीएम नए लेकिन सामंजस्य नहीं
पूनियां के बाद 2023 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सीपी जोशी को बीजेपी अध्यक्ष बनाया गया, हालांकि अब केंद्र में बीजेपी ने वसुंधरा राजे को राजस्थान में सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट करने से इंकार कर दिया था। इधर चुनाव जीतने के बाद पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया गया। हालांकि सीपी जोशी भी लो प्रोफाइल माने जाते हैं लेकिन भजनलाल के सीएम बनने के बाद संगठन से सामंजस्य बिगड़ा। बीजेपी धड़ों में बंटी नजर आई। इसके चलते लोकसभा चुनावों में बीजेपी को राजस्थान में मुंह की खानी पड़ी। आखिर में हार का ठीकरा सीपी जोशी के सिर फूट गया और उनकी अध्यक्ष पद से विदाई कर दी गई। अब न तो भजनलाल शर्मा का कोई गुट है और न ही मदन राठौड़ किसी गुट से आते हैं। राठौड़ को संघ के कहने पर ही राज्यसभा भेजा गया था इसलिए अध्यक्ष पद के लिए उन्हें संघ की वरदहस्त भी मिल गया।
अब तक के प्रदेशाध्यक्ष —-
1988-89 – ललित किशोर चतुर्वेदी
1986-88, 1989-90, 2000-2002- भंवरलाल शर्मा
1999-2000- गुलाबचंद कटारिया
1997-1999- रघुवीर सिंह कौशल
2002-2003,2013-2014- वसुंधरा राजे
2006-2008- महेश शर्मा
2008-2009-ओम माथुर
2009-2013- अरुण चतुर्वेदी
2014-2018- अशोक परनामी
2018-2019- मदनलाल सैनी
2020-2023- सतीश पूनिया
2023-2024 (जुलाई)- सीपी जोशी