जयपुर.
मदन राठौड़ को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद अब इसके पीछे के कारणों को तलाश करने के लिए कई सारी संभावनाओं का दौर चल पड़ा है। प्रदेश में इस बदलाव के पीछे केंद्र की मूल मंशा तो भविष्य में ही पता चल पाएगी लेकिन फिलहाल माना जा रहा है कि पिछड़े वर्ग को नेतृत्व देकर केंद्र पूरे पिछड़े वर्ग को अपने पाले में खिंचना चाहता है, हालांकि प्रदेश में इस समुदाय की आबादी मात्र तीन लाख है।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तेली घांची समाज से आने वाले मदन राठौड़ को 25 जुलाई की रात को ही प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है लेकिन सूत्रों से सूचना यह मिली है कि राठौड़ और प्रधानमंत्री की मुलाकात 2 दिन पहले ही हो चुकी थी। साथ ही दो दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री अमित शाह से भी मिल चुके थे, बताया जा रहा है कि इस मुलाकात में सबकुछ फाइनल हो चुका था। मात्र 6 माह पहले जब राठौड़ ने विधानसभा चुनाव में सुमेरपुर से टिकट मांगा था तो उन्हें टिकट नहीं दिया गया। नाराज राठौड़ ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन भरकर चुनाव लड़ने की बात कही थी। माना जा रहा है कि तब पीएम मोदी ने राठौड़ को नामांकन वापस लेने के निर्देश देते हुए धीरज रखने की बात कही थी, इसके बाद राठौड़ ने नामांकन वापस ले लिया था। जानकार सूत्रों का कहना है कि पीएम मोदी का कहना मानने के कारण ही मदन राठौड़ को राज्यसभा भेजा गया और अब राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष का पदभार दिया गया है।
जानकारों का कहना है कि समाज और एससी-एसटी वर्ग से भी ज्यादा आबादी ओबीसी वर्ग की है। ऐसे में राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर प्रदेश में केंद्र इस वर्ग को साधने के प्रयास में है। कयास लगाए जा रहे थे कि ब्राह्मण वर्ग से मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद किसी जाट, राजपूत या गुर्जर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा, जैसी कि राजस्थान में अब तक की परंपरा रही है लेकिन अनुमानों के उलट ओबीसी वर्ग के मदन राठौड़ को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। आने वाले महीनों में राजस्थान में विधानसभा के पांच उपचुनाव भी होने हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में ओबीसी मतदाताओं को एकजुट करने के लिए राठौड़ की नियुक्ति को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।