महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के रसूखदार पवार घराने में फिर सियासी टकराव खुलकर सामने आता नजर आ रहा है। एक ओर जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में नंबर दो अजित पवार अब भारतीय जनता पार्टी की तरफ से झुकाव के संकेत दे रहे हैं। वहीं, पार्टी चीफ और दिग्गज राजनेता शरद पवार भतीजे से अलग राय रखते नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि चाचा-भतीजे के बीच दशकों से जारी खींचतान अब निर्णायक मोड़ पर आ गई है।
पहले इतिहास समझें
सीनियर और जूनियर पवार के बीच तनाव की खबरें सबसे पहले साल 2010 में सामने आईं। उस दौरान कांग्रेस-एनसीपी में नेतृत्व बदलाव की मांग जोर पकड़ रही थी। एक ओर अशोक चव्हाण के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद कांग्रस ने पृथ्वीराज चव्हाण को चुना। वहीं, एनसीपी में अजित को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग उठने लगी। जबकि, तब यह पद छगन भुजवल के पास था। अब कहा जाता है कि पार्टी विधायकों के बीच अपने वर्चस्व के चलते अजित भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते थे, जो सीनियर पवार को रास नहीं आई।
इसके बाद एक और किस्सा साल 2019 में देखा गया, जहां अजित भारतीय जनता पार्टी नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ सरकार बनाने के लिए निकल पड़े। इधर, शरद पवार महाविकास अघाड़ी बनाने में जुटे हुए थे। हालांकि, तब भी शरद पवार के समर्थक विधायकों ने पक्ष नहीं बदला और अजित की कोशिश नाकाम हो गई। हालांकि, एमवीए सरकार में उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया था।
क्या पार्टी में पड़ेगी फूट?
कहा जाता है कि MVA गठन के समय पवार ने यह सुनिश्चित किया कि उनके वफादार विधायक अहम पदों पर रहें। साथ ही उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को भी बड़ी जिम्मेदारियां दी। अब माना जा रहा है कि ताजा घटनाक्रमों से एनसीपी में फूट का खतरा भी बढ़ गया है। खबर है कि अजित अधिक से अधिक विधायकों को अपने साथ करने में जुटे हैं। वहीं, पवार एनसीपी में अपना दबदबा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं।
अब ताजा हाल समझें
अब जब अजित संकेतों के जरिए प्रस्ताव दे रहे हैं कि एनसीपी को एनडीए के साथ जाना चाहिए। वहीं, शरद भाजपा के साथ जाने के पक्ष में नहीं हैं। इतना ही नहीं, कहा जा रहा है कि उन्होंने अजित को बता दिया है कि वह कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इधर, महाराष्ट्र में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी से सियासी अटकलें और बढ़ गई हैं।