वास्तु शास्त्र की कुछ मान्यताएं हैं, जिनका पालन करने से प्राचीन काल से ही भूमि पर निर्माण कराने वाला भूमि का स्वामी सुख-शांति का अनुभव करता है एवं वास्तु शास्त्र के नियमों की अवहेलना करने वाला विघ्न, बाधा, अशांति का सामना करता चला आ रहा है। भवन का निर्माण कराते समय निम्नलिखित बहुत ही छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण नियमों का पालन अवश्य करें ताकि आपको अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े।
नींव का शिलान्यास शुभ लग्न में ही करना चाहिए। जिस लग्न में अथवा राशि में शिलान्यास करना हो, वह आपकी राशि से आठवीं ना हो। अगर शुभ मुहूर्त में नींव खोदने का कार्य किया जाए, तो मकान बिना किसी रुकावट के जल्दी ही बन जाता है।
भूमि का पूजन तथा नींव की खुदाई के हेतु ईशान कोण से ही शुरू करना चाहिए।
भवन की नींव भरते समय शहद से भरा बर्तन रखना चाहिए। इससे न केवल मकान बिना किसी बाधा के बनने लगेगा, बल्कि आजीवन वहां पर निवास करने वालों को सुख, शांति और लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
भवन निर्माण शुरू करने से पूर्व राजगीरों, नक्शा बनाने वालों, वास्तु शास्त्रियों का उचित सम्मान करें।
भवन निर्माण कराते समय जमीन से या जमीन पर चीटियां निकले तो उन चीटियों को आटा एवं शक्कर मिला कर खिलाएं।
भवन के मालिक की जन्मकुण्डली में पांचवे घर में केतु हो, तो भवन निर्माण करने के पहले केतु का दान करें।
एक बार भवन का निर्माण शुरू कर दें तो फिर बीच में उसे रोकें नहीं, अन्यथा पूरे मकान में राहु का वास हो जाता है, इससे धन की बर्बादी होती है।
जब नया भवन बनाएं तो ईंट, लोहा, पत्थर और लकड़ी नयी ही लगानी चाहिए। नए मकान में पुरानी लकड़ी नहीं लगानी चाहिए। एक मकान में लगी हुई लकड़ी दूसरी मकान में लगाने से सम्पत्ति का नाश और अशांति प्राप्त होती है।
मकान में एक या दो किस्म की जाति की लकड़ी लगानी चाहिए। एक जाति की लकड़ी उत्तम, दो जाति की लकड़ी मध्यम, तथा इससे ज्यादा अधम होती है।
भूमि पर खुदाई का कार्य हमेशा ईशान कोण के कोने से ही करना चाहिए। यह खुदाई का कार्य भूमि पूजन, नीव रखने, पानी की बोरिंग आदि के लिए हो सकती है।