जब भी नवग्रहों की पूजा और उनको प्रसन्न करने की बात आती है, तो सर्वप्रथम ग्रहराज सूर्य को प्रसन्न करना होगा क्योंकि जिस तरह से सभा में राजा, घर में मुखिया और कार्यस्थल पर बॉस की अहम भूमिका होती है, ठीक उतनी ही अहम भूमिका व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की है, क्योंकि यह ग्रहों के राजा होने के साथ आत्मा का प्रतिनिधित्व भी करते हैं.
सभी ग्रह, सूर्य की परिक्रमा करते हैं इसलिए सूर्य के बिना कोई भी ग्रह अपना फल देने में असमर्थ है. कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होने पर ही व्यक्ति को आरोग्यता यानी निरोगी काया, राजसी सुख, मान सम्मान और सरकारी पद जैसे कई सुखों की प्राप्ति होती है इसलिए अक्सर लोग सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए उपाय किया करते हैं. आइए जानते है ऐसे ही कुछ उपाय और नियमों को.
अर्घ्य
सूर्यदेव को प्रसन्न करने की विधि सरल है. उन्हें नियमित रूप से प्रणाम करके ही उन्हें प्रसन्न किया जाता है. जो लोग आदरपूर्वक तथा नियम से प्रतिदिन भगवान सूर्य की आराधना नियमों को खंडित किये बिना करते हैं, उन्हें इससे जुड़े फल की प्राप्ति जल्दी होती है.
बता दें कि सूर्यदेव नियम के पक्के हैं वह समय अनुसार ही आते है और चले जाते हैं, इसलिए सूर्य की उपासना करने वाले व्यक्ति को भगवान भास्कर के आगमन से पूर्व ही स्नानादि करके तैयार हो जाना चाहिए. सूर्यदेव के पधारते ही उनकी लालिमा को देखते हुए जल अर्पित करना है सबसे अच्छा माना जाता है, इसलिए जितनी जल्दी आप अर्घ्य देंगे उतना ही आपके लिए अच्छा होगा.
कैसे दें अर्घ्य
अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग करना सबसे अच्छा होता है. दोनों हाथों से पात्र को पकड़कर सिर से ऊपर हाथ ले जाकर अर्घ्य देना चाहिए जिससे धारा के बीच से सूर्यदेव के दर्शन हो सके. तांबे का पात्र कम से कम एक या आधे लीटर का होना चाहिए जिससे धारा अच्छे से बन सके. एक और बात जिसका आपको विशेष रूप से ध्यान रखना है, कि जल बहकर नाली या किसी गंदी जगह पर न जाएं और न ही इसकी छींटे आपके पैरों पर पड़े इसके लिए साफ सुथरा बर्तन या गमला रख लेना चाहिए जिससे अर्घ्य का जल सीधे उस बर्तन में जाए. गमले में तुलसी का पौधा न हो इस बात का भी ध्यान रखें.
मंत्र
अर्घ्य देते समय “ऊँ नमो नारायणाय मंत्र”, ऊँ भास्कराय नमः या गायत्री मंत्र का जप 108 बार और कम से कम 28 बार या 10 बार करना चाहिए.