Home राजनीति लोकसभा चुनाव में जीतकर भी राज्यसभा में कांग्रेस का नुकसान? समझें गणित

लोकसभा चुनाव में जीतकर भी राज्यसभा में कांग्रेस का नुकसान? समझें गणित

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नई दिल्ली

लोकसभा चुनाव के बाद उच्च सदन राज्यसभा का नंबरगेम भी बदल गया है. उच्च सदन के कुछ सदस्यों ने लोकसभा चुनाव में जीत के बाद राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. इनमें कांग्रेस के भी दो सांसद हैं. पार्टी के राज्यसभा सांसद केसी वेणुगोपाल और दीपेंद्र सिंह हुड्डा लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं. केसी वेणुगोपाल राजस्थान और दीपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा से राज्यसभा सदस्य थे. इन दोनों नेताओं के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत संभव नजर नहीं है. ऐसे में पार्टी को दो सीटों का नुकसान होना तय माना जा रहा है.

लोकसभा चुनाव तक उच्च सदन में कांग्रेस का संख्याबल 28 सदस्यों का था. अब दो सदस्यों के इस्तीफे के बाद पार्टी उच्च सदन के नंबरगेम में 26 सीट पर आ गई है. कांग्रेस राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बाद दूसरे नंबर की पार्टी है. बीजेपी के राज्यसभा में 90 सदस्य हैं. लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 63 सीटों का नुकसान हुआ था और पार्टी 2019 की 303 के मुकाबले इस बार 240 सीटें जीत सकी लेकिन राज्यसभा में उसे दो सीट का फायदा होना तय माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव में 99 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी कांग्रेस का गेम राज्यसभा में कैसे खराब हो रहा है, बीजेपी को कैसे फायदा हो रहा है?

बीजेपी को होगा 2 सीट का लाभ

बीजेपी को राज्यसभा उपचुनाव में दो सीट का लाभ होगा और पार्टी संख्याबल के लिहाज से 92 सीटों के साथ नंबर वन पोजिशन को और मजबूत कर लेगी. दरअसल, राज्यसभा चुनाव या उपचुनाव में मतदान के लिए प्लस वन फॉर्मूले का उपयोग होता है. हरियाणा विधानसभा की स्ट्रेंथ के लिहाज से देखें तो दीपेंद्र हुड्डा के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर जीत सुनिश्चित करने के लिए किसी भी दल को 46 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट चाहिए होंगे. बीजेपी के 41 विधायक हैं और एक निर्दलीय विधायक, हरियाणा लोकहित पार्टी के गोपाल कांडा को मिलाकर सरकार के पास कुल 43 विधायकों का समर्थन है जो 46 से तीन कम है.

हरियाणा में बीजेपी अकेले दम सीट जीतने की स्थिति में नहीं है फिर भी कांग्रेस या कोई और पार्टी उसके खिलाफ उम्मीदवार उतारने में हिचक रही है. इसके पीछे बीजेपी की ओर से जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के चार विधायकों के समर्थन का दावा है. बीजेपी ने जब जेजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था, जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला ने दिल्ली स्थित अपने फॉर्महाउस पर विधायकों की बैठक बुलाई थी जिसमें चार विधायक नहीं पहुंचे थे. सरकार ने जिस दिन सदन में बहुमत साबित किया, जेजेपी प्रमुख रैली कर रहे थे और सभी विधायकों से इस रैली में पहुंचने के लिए कहा गया था लेकिन पार्टी के कुछ विधायक विधानसभा में मौजूद थे.

राजस्थान में क्या है गणित?

राजस्थान में भी तस्वीर बदल चुकी है. सूबे में अब बीजेपी की सरकार है. राजस्थान विधानसभा की स्ट्रेंथ 200 सदस्यों की है. सूबे के कोटे की एक सीट जीतने के लिए 101 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट चाहिए होंगे. 199 सीटों के लिए हुए चुनाव में ही बीजेपी को 115 सीटों पर जीत मिली थी जो जीत के लिए जरूरी 101 विधायकों से कहीं अधिक है.

क्या खतरे में आई खड़गे की कुर्सी?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी हैं. राज्यसभा में कांग्रेस के 26 सीटों पर आने से उनकी विपक्ष के नेता की कुर्सी पर भी संकट की बात होने लगी थी. राज्यसभा में विपक्ष के नेता का दर्जा पाने या बनाए रखने के लिए सदन की कुल स्ट्रेंथ का 10 फीसदी संख्याबल चाहिए होता है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता के लिए यह नंबर 25 है. कांग्रेस के 26 सदस्य ही रह गए जो जरूरी संख्याबल से दो ही अधिक है. ऐसे में अगर पार्टी के दो सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो जाए या अपरिहार्य कारणों से उच्च सदन के सदस्य नहीं रहते हैं तो कांग्रेस की स्ट्रेंथ 25 से कम हो सकती है. ऐसे में खड़गे का नेता प्रतिपक्ष पद पर बने रहना मुश्किल होता.

तेलंगाना से होगी नुकसान की भरपाई?

राजस्थान और हरियाणा से हो रहे दो सीटों के नुकसान की भरपाई के लिए कांग्रेस की नजर तेलंगाना जैसे राज्य पर है. तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है और सूबे की सीटों पर राज्यसभा चुनाव हुए तो पार्टी के जीतने की संभावनाएं मजबूत हैं. भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के राज्यसभा सांसद केशव राव के इस्तीफे को भी कांग्रेस की इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. केशव राव के इस्तीफे से रिक्त हुई सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत तय है. ऐसे में कांग्रेस की स्ट्रेंथ भी उच्च सदन में 26 से बढ़कर 27 पहुंच जाएगी.