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मेधा पाटकर को 5 साल की जेल, दिल्ली के LG के मानहानि केस में मिली सजा

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नई दिल्ली

मेधा पाटकर को 5 महीने कैद की सजा सुनाई गई है। ऐक्टिविस्ट को दिल्ली की साकेत कोर्ट ने उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की ओर से दायर आपराधिक मानहानि केस में यह सजा दी है। मेधा पाटकर पर आरोप था कि उन्होंने उपराज्यपाल के खिलाफ प्रेस रिलीज जारी की और इससे जनता के बीच उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया। यही नहीं अदालत ने मेधा पाटकर को आदेश दिया है कि वह 10 लाख रुपये की रकम विनय सक्सेना को दें। यह उनकी मानहानि की भरपाई के लिए होगी।

अदालत के फैसले के बाद मेधा पाटकर की प्रतिक्रिया भी आई है। उन्होंने कहा कि सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, 'सत्य कभी हराया नहीं जा सकता। हमने किसी की मानहानि का प्रयास नहीं किया। हम सिर्फ काम करते हैं। इस फैसले को हम ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे।' मेधा पाटकर 'नर्मदा बचाओ आंदोलन' से जुड़ी रही हैं। इससे पहले अदालत ने 7 जून को हुई सुनवाई में मेधा पाटकर को दोषी करार दिया था और सजा सुनाने के लिए 1 जुलाई की तारीख तय की थी। इससे पहले अदालत ने कहा था कि सक्सेना को ‘देशभक्त नहीं, बल्कि कायर कहने वाला और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने वाला पाटकर का बयान न केवल अपने आप में मानहानि के समान है, बल्कि इसे नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए गढ़ा गया था।’

पाटकर और सक्सेना के बीच वर्ष 2000 से ही एक कानूनी लड़ाई जारी है, जब पाटकर ने अपने और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सक्सेना के विरुद्ध एक वाद दायर किया था। सक्सेना ने एक टीवी चैनल पर उनके (सक्सेना के) खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और प्रेस को मानहानिकारक बयान जारी करने के लिए भी पाटकर के खिलाफ दो मामले दायर किए थे। इस तरह 23 सालों के बाद अब मेधा पाटकर के खिलाफ फैसला आया है।

विनय कुमार सक्सेना की मानहानि से जुड़ा यह केस करीब 23 साल पुराना है। उस वक्त वो गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे। दिल्ली की अदालत में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर पर 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। दो दशक से ज्यादा पुराने इस मामले में अदालत ने सभी सबूतों और तथ्यों को देखने के बाद अपना फैसला सुनाया है। हालांकि, अदालत ने मेधा पाटकर को एक राहत भी दी और उन्हें मिली 5 महीने की कैद की सजा को एक महीने के लिए सस्पेंड कर दिया ताकि वो आदेश के खिलाफ अपनी अपील दायर कर सकें।

मेधा पाटकर ने अदालत से गुहार लगाई थी कि  उन्होंने प्रोबेशन के शर्तों पर रिहा कर दिया जाए लेकिन अदालत ने उनकी गुहार नहीं मानी। जज ने कहा कि तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आरोपी की उम्र और नुकसान को देखते हुए मैं उन्हें कठोर सजा नहीं दे रहा हूं। बता दें कि इस अपराध में दो साल से अधिक के कारावास और जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है। 24 मई को अदालत ने इस बात पर गौर किया था कि मेधा पाटकर के द्वारा विनय सक्सेना को कायर कहने और उनपर हवाला ट्रांजेक्शन में शामिल रहने का आरोप लगाने से ना सिर्फ मानहानि हुआ बल्कि इससे उनकी नकारात्मक छवि भी बनी।

बता दें कि मेधा पाटकर और विनय कुमार सक्सेना के बीच साल 2000 से ही कानूनी लड़ाई चल रही है। उस वक्त मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना पर एक सूट दायर किया था और कहा था कि उन्होंने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ एड पब्लिश करवाए। उस वक्त विनय सक्सेना अहमदाबाद आधारित एक एनजीओ 'Council for Civil Liberties' का नेतृत्व कर रहे थे। विनय सक्सेना ने भी उस वक्त मेधा पाटकर के खिलाफ साल 2001 में दो केस दर्ज किया। यह केस एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने और मानहानि करने वाले बयान जारी करने को लेकर था।