नई दिल्ली
बिहार की नीतीश कुमार की सरकार को आज आरक्षण के मुद्दे पर पटना हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार के उस निर्णय को खत्म कर दिया, जिसमें आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करनेकी बात कही गई थी। आरजेडी के साथ गठबंधन में रहते हुए नीतीश कुमार ने जाति आधारित गणना कराने के बाद यह फैसला किया था। हाईकोर्ट से भले ही झटका लगा है, लेकिन सरकार के पास अभी भी अपने इस फैसले को बरकरार रखना का मौका है। हालांकि इसके लिए उसे केंद्र सरकार के समर्थन की दरकार होगी।
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने आरक्षण का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि केंद्र में अगर नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा दो तिहाई की बहुमत से सरकार बनाने में सफल होती है तो संविधान संशोधन कर आरक्षण को खत्म कर दिया जाएगा। हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बार-बार इस बात को दोहराते रहे कि कोई भी आरक्षण को कभी भी खत्म नहीं कर सकता है।
केंद्र के पाले में गेंद फेंक सकते हैं नीतीश कुमार
नीतीश सरकार को अब पटना हाईकोर्ट से जब झटका लगा है तो उसके पास केंद्र सरकार के पाले में गेंद फेंकने का मौका बचा है। ऐसा इसलिए कि केंद्र में एनडीए गठबंधन की सरकार है। इस नई सरकार में नीतीश कुमार की भूमिका भी अहम है, क्योंकि उनके 12 सांसद चुनाव जीतकर आए थे। ऐसे में वह आरक्षण जैसे सियासी तौर पर संवेदनशील मुद्दे पर केंद्र पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकते हैं।
क्या है नौंवीं अनुसूची?
संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कानूनों को अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती है। अब तक इस अनुसूची के तहत बने कानूनों की संख्या 284 हो गई है। 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की थी। ऐसे में अगर आरक्षण को लेकर केंद्र सरकार नौवीं अनुसूची को संसोधित करती है तभी यह व्यवस्था स्थायी हो पाएगी।
इन राज्यों की भी है मांग
अब तक कई राज्यों की सरकार ने केंद्र सरकार से आरक्षण की सीमा बढ़ाने की गुजारिश की थी। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संविधान की नौवीं अनुसूची में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के 76 फीसदी कोटे की अनुमति देने वाले दो संशोधन विधेयकों को शामिल करने की मांग की थी। उससे पहले पिछले साल नवंबर में झारखंड सरकार ने भी राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 77 फीसदी कर दिया था और उसे प्रस्ताव को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखी थी।
आपको बता दें कि बिहार में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षण सीमा 16 से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया था। इसके अलावा, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 1 से बढ़ाकर 2 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ी जाति (ईबीसी) के लिए 18 से बढ़ाकर 25 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 15 से बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया था। इस तरह बिहार में जाति-आधारित आरक्षण की कुल मात्रा 50 से बढ़कर 65 फीसदी हो गई थी। हाईकोर्ट के आज के फैसले के बाद बिहार में अब पुराने तरीके से आरक्षण की सुविधा मिलेगी।