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आरबीआई की तीन दिवसीय एमपीसी बैठक शुरू, रेपो रेट यथावत रहने की संभावना

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मुंबई

 लोकसभा चुनाव में एनडीए को मिले बहुतम के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) की द्वमासिक मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय समीक्षा बैठक5 जून को यहां शुरू हो गई। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक इस बार भी नीतिगत रेपो रेट में बदलाव की संभावना नहीं है। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास 7 जून इस बैठक के फैसले का ऐलान करेंगे।

आर्थिक मामलों के जानकारों ने बताया कि आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय समीक्षा बैठक 7 जून तक चलेगी। ये चालू वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी मौद्रिक समीक्षा बैठक है। जानकारों का मानना है कि इस बार भी बैठक में प्रमुख नीतिगत रेपो रेट में बदलाव की उम्मीद नहीं है। फिलहाल रेपो रेट 6.50 फीसदी पर बनी हुई है।

आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा बैठक प्रत्येक दो महीने में एक बार होती है। रिजर्व बैंक ने इससे पहले अप्रैल, 2024 में हुई एमपीसी की बैठक में ब्याज दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की थी। आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 की फरवरी में आखिरी एमपीसी की बैठक में प्रमुख नीतिगत दर रेपो रेट को 6.25 फीसदी से बढ़ाकर 6.50 फीसदी कर दिया था।

 

भाजपा को कमजोर बहुमत से सुधार एजेंडे के लिए चुनौतियां हो सकती हैं उत्पन्न : फिच रेटिंग्स

 देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अपना पूर्ण बहुमत खोने और सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर होने से भूमि तथा श्रम जैसे महत्वाकांक्षी सुधार एजेंडे के लिए चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। फिच रेटिंग्स ने  यह बात कही।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत भाजपा ने 2014 के बाद पहली बार अपना बहुमत खो दिया और 543 सीट वाली लोकसभा में से 240 सीट ही हासिल कर पाई। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना बना रही है, जिसने 52 सीट जीती हैं। इससे गठबंधन को 292 सीट का बहुमत हासिल हो जाता है।

फिच रेटिंग्स ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा नीत राजग अगली सरकार बनाएगी और प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार सत्ता में वापस आएंगे। हालांकि कमजोर बहुमत के साथ यह सरकार के महत्वाकांक्षी सुधार एजेंडे के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकता है।’’

रेटिंग एजेंसी ने कहा, ‘‘चूंकि भाजपा पूर्ण बहुमत से चूक गई है और उसे अपने गठबंधन सहयोगियों पर अधिक निर्भर रहना होगा, इसलिए विवादास्पद सुधारों को पारित करना अधिक कठिन हो सकता है। खासकर भूमि और श्रम के संबंध में जिन्हें हाल ही में भाजपा ने भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किया है।’’

हालांकि, फिच ने उम्मीद जतायी कि बहुमत कम होने के बावजूद नीतिगत निरंतरता बनी रहेगी। उसने सरकार के पूंजीगत व्यय बढ़ाने, कारोबार सुगमता के उपायों और धीरे-धीरे राजकोषीय समेकन पर अपना ध्यान केंद्रित करने को लेकर भी उम्मीद जाहिर की।

एजेंसी ने कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि भारत का मजबूत मध्यम अवधि का विकास परिदृश्य बरकरार रहेगा, जिसे सरकारी पूंजीगत व्यय अभियान और बेहतर कॉर्पोरेट स्थिति व बही-खाते से बल मिलेगा। अगर सुधारों को आगे बढ़ाना अधिक चुनौतीपूर्ण साबित होता है, तो मध्यम अवधि की विकास संभावनाओं में उछाल बेहद मामूली रहने का अनुमान है।