पटना.
बिहार में जनता दल यूनाईटेड ने फिर वापसी कर ली है। वापसी का मतलब स्ट्राइक रेट से है। भारतीय जनता पार्टी से बेहतर नंबर के साथ नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का परफॉर्मेंस रहा है। और, इसके साथ हवा उठ चली है कि नीतीश कुमार फिर से पलटने वाले हैं। इसमें इतना दम इसलिए है, क्योंकि तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के चुनाव प्रचार के खत्म होने के पहले तक कहा था कि चार तारीख को चाचा कुछ बड़ा करेंगे।
अब चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि भाजपा को केंद्र में सरकार बनाने के लिए जदयू जैसे क्षेत्रीय दलों का साथ अपरिहार्य है। तो, क्या एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर दिल्ली से लौटे नीतीश कुमार फिर कुछ वैसा करने वाले हैं? सभी की नजर अब दिल्ली में एनडीए सरकार बनाने के लिए बुधवार को होने वाली बैठक पर है।
जादुई आंकड़े ने बढ़ा दी सरगर्मी
अबकी बार 400 पार की जगह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार की जनसभाओं में 4000 पार तक की बात कर चुके थे, लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा के कई नेताओं के साथ जदयू भी नहीं चाहता था कि ऐसा कोई नंबर आ जाए। उतनी बड़ी संख्या का मतलब होता कि भाजपा अकेले सरकार बनाने की स्थिति में होती और उस हालत में कोई भी बड़ा दल क्षेत्रीय दलों को तवज्जो नहीं देता। यही भाजपा से भी क्षेत्रीय दलों को डर रहता है। कांग्रेस के साथ रहने वालों को भी उससे यही डर रहता है। यह डर गैरवाजिब भी नहीं। खैर, भाजपा के अंदर भी पीएम मोदी के खेमे को छोड़ दें तो बहुत सारे नेता अंदर-अंदर चाहते थे कि जीतें तो लेकिन दंभ वाला नहीं। यही हुआ है। बहुमत के लिए 272 का जादुई आंकड़ा छूना है और मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन इससे पार है, लेकिन इस डर के साथ कि कोई साथ न छोड़ जाए।
लालू की चुप्पी का फॉर्मूला यहीं
राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव लोकसभा चुनाव के दौरान अमूमन चुप ही रहे। बोले भी तो पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ। सीएम नीतीश कुमार को लेकर उन्होंने शांति बनाए रखी। दूसरी तरफ विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव जो 28 जनवरी से लेकर अप्रैल अंत तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 'पलटू चाचा' कहने से नहीं अघा रहे थे, उसके बाद से थोड़ी नरमी बरत रहे थे। लोकसभा चुनाव के अंतिम तीन चरण के मतदान तक यह रुख और नरम हो गया। वह नीतीश कुमार की कुछ बड़ी योजना की बात करने लगे। उधर, महागठबंधन के नेताओं ने भी कई बार नीतीश कुमार को सामाजिक न्याय का सिपाही बताया। इतना ही नहीं, यह भी मौका लगते ही याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देशभर के विपक्षी दलों को एकजुट करने में नीतीश कुमार की ही भूमिका थी। अब, जैसे ही चुनाव परिणाम यह बताने लगा कि राजग के लिए बगैर नीतीश कुमार केंद्र में सरकार बनाना मुश्किल होगा तो महागठबंधन के नेता अंदरखाने उन्हें मनाने की तैयारी में भी जुट गए। कांग्रेस भी अंदर-अंदर इस योजना में साथ है। हालांकि, जदयू के नेता हमेशा की तरह साफ-साफ कह रहे हैं कि नीतीश कुमार का फैसला नहीं बदलने वाला है।
महागठबंधन की तैयारी से अलग, जानें क्या ज्यादा संभावना
महागठबंधन सीएम नीतीश कुमार पर डोरे डाल रहा है, जबकि इस बात की संभावना ज्यादा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी के स्ट्राइक रेट के आधार पर केंद्रीय कैबिनेट में मजबूत दावेदारी लेंगे। 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 में से 16 सीटें जीतने पर भी उन्हें भाजपा ने एक केंद्रीय मंत्रीपद का ऑफर दिया था। वह नहीं माने थे। बाद में आरसीपी सिंह जदयू के अध्यक्ष बने तो मंत्री भी बन गए। इस बात से नाराजगी के कारण आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की नजर में चढ़ गए और उनका अंतिम हश्र राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पूरा कर दिया। पिछली बार नीतीश कुमार केंद्र में ललन सिंह को भी भेजना चाहते थे। इस बार राज्यसभा भेजे गए संजय झा मंत्रीपद की सूची में जदयू की ओर से सबसे ऊपर हैं। इसके बाद भी जदयू इस बार भरपाई के लिए दो और पद की चाहत दिखा सकती है। मतलब, संजय झा सहित तीन। जहां तक उनके वापस भटकने की चर्चा है तो इस बार अपनी छवि बचाने के लिए ही वह परिणाम सामने आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल आए थे। इसलिए, जदयू के नेता अंदर-अंदर भी कह रहे कि इस बार या आगे फिलहाल ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने भी साफ कहा कि जदयू एनडीए का हिस्सा है और कहीं जाने की बात अफवाह है। इस बार जदयू को 16 सीटें दी गई थीं और 17 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा के मुकाबले नीतीश कुमार की पार्टी का स्ट्राइक रेट बेहतर है।