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राजस्थान-उदयपुर में तीन दिन बाद हुआ चार लोगों का अंतिम संस्कार, मौताणा लेकर ही माने आदिवासी समुदाय के लोग

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उदयपुर.

आदिवासी समुदाय में मौताणा वसूली की परंपरा है। जब किसी आदिवासी की किसी अन्य व्यक्ति के यहां संदिग्ध मौत हो जाती है तो मरने वाले के परिजन और रिश्तेदार दोषी व्यक्ति के परिवार से मौताणा के रूप में बड़ी राशि की मांग करते हैं और मांग पूरी न होने तक दोषी परिवार पर दबाव बनाए रखने के लिए मृतक के शव का पोस्टमार्टम व अंतिम संस्कार नहीं होने देते।

यदि किसी कारण से वह व्यक्ति मौताणा नहीं दे पाता तो उसका अगला कदम होता है हमला जिसे आदिवासी चढ़ोतरा कहते हैं। यानी मौताणा वसूली करने वाले लोग दोषी परिवार और रिश्तेदारों पर चढ़ोतरा करके उनके मकान, खेत व अन्य प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाते हैं। आदिवासियों के इन परंपरागत रीति-रिवाजों के आगे पुलिस, प्रशासन या जनप्रतिनिधि की भी नहीं चलती। पूर्व में ऐसे कई वाकये हो चुके हैं, जिसमें मौताणा न मिलने पर मृतक के रिश्तेदारों ने लाश का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया। कुछ मामले तो ऐसे भी रहे जिनमें लाश सड़ने के बाद कंकाल की अंतिम क्रिया हुई। ऐसे ही एक मामले में  बीती 28 मई को कोटड़ा तहसील के सावन क्यारा गांव में आई बारात को वधू पक्ष ने महुए की शराब पिलाई और मांसाहारी भोजन कराया था, जिसे खाकर वर पक्ष के तीन लोगों और लड़की पक्ष की एक महिला की मौत हो गई थी। परंपरा की जानकारी रखने वाले राजस्थान सरकार के जनजाति विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी, जो कि इसी क्षेत्र के निवासी हैं, ने मृतकों के परिजनों को लाशों के अंतिम संस्कार के लिए मनाने की खूब कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए। इसके बाद प्रत्येक मृतक को डेढ़ लाख रुपये की सरकारी सहायता की घोषणा 28 मई को ही कर दी गई थी लेकिन बात नहीं बन पाई।

इसके बाद शुक्रवार को मंत्री खराड़ी की पहल पर एक-एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता और दी गई तब जाकर लाशों का अंतिम संस्कार संपन्न हुआ। पुराने समय में जाने किन कारणों से यह परंपरा बनाई गई होगी लेकिन वर्तमान में इस तरह की परंपरा कहीं न कहीं लोगों के मूलभूत अधिकारों का हनन ही करती दिखाई देती है।