भागलपुर.
पांच दशक तक बिहार की राजनीति के प्रमुख चेहरा बने रहे भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता सुशील मोदी अब नहीं रहे। पिछले महीने की तीन तारीख को उन्होंने कैंसर होने की जानकारी देते हुए सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा की थी। सोमवार की रात दिल्ली में निधन हो गया। महज 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े।
संगठन के प्रति अपार निष्ठा से वह आरएसएस सदस्य बने रहे। 1973 मं पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव बने। वर्ष 1973 में बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के सदस्य बने।
पिता के साथ रेडिमेड की दुकान को भी संभाला
जेपी आंदोलन हुआ तो सुशील मोदी भी इसमें कूद पड़े। कांग्रेस की सरकार ने इन्हें 19 महीने तक जेल में रखा। 1977 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े। कुछ महीनों तक पिता के साथ रेडिमेड की दुकान को भी संभाला। इसी बीच भाजपा ज्वाइन की। 1990 में भाजपा ने पटना केंद्रीय विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया। चुनाव जीते। मुख्य सचेतक भी बने। नवंबर 1996 में नेता प्रतिपक्ष बने। 2000 में सात दिन के लिए नीतीश सरकार बनी तो मंत्री भी बने। इसके बाद फिर 2004 तक नेता प्रतिपक्ष बने रहे। इस दौरान सुशील लालू-राबड़ी सरकार के खिलाफ जनता की आवाज बन उभड़े। 2004 में पहली बार भागलपुर से भाजपा के टिकट पर सांसद बने।
करीब चार दशकों तक बिहार भाजपा की धुरी बने रहे
2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी तो सुशील मोदी बिहार के उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री बने। 2017 में एनडीए सरकार बनी तो फिर से उपमुख्यमंत्र बने। उपमुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने 11 बार बिहार का बजट पढ़ा। इसके बाद फिर से 2020 में एनडीए की सरकार बनी तो सुशील मोदी को डिप्टी सीएम नहीं बनाया गया। भाजपा के इस फैसले ने सबको चौंका दिया। पार्टी ने 2020 में उन्हें राज्यसभा भेजा। विशेषज्ञ का कहना है कि सुशील मोदी बिहार में भाजपा और जदयू के बीच सुशील मोदी अहम कड़ी थे। करीब चार दशकों तक बिहार भाजपा की धुरी बने रहे।
पीएम मोदी बोले- भाजपा के उत्थान के पीछे अमूल्य योगदान रहा
सुशील मोदी के निधन के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर तस्वीर शेयर की और लिखा कि पार्टी में अपने मूल्यवान सहयोगी और दशकों से मेरे मित्र रहे सुशील मोदी जी के असामयिक निधन से अत्यंत दुख हुआ है। बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका अमूल्य योगदान रहा है। आपातकाल का पुरजोर विरोध करते हुए, उन्होंने छात्र राजनीति से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। वे बेहद मेहनती और मिलनसार विधायक के रूप में जाने जाते थे। राजनीति से जुड़े विषयों को लेकर उनकी समझ बहुत गहरी थी। उन्होंने एक प्रशासक के तौर पर भी काफी सराहनीय कार्य किए। जीएसटी पारित होने में उनकी सक्रिय भूमिका सदैव स्मरणीय रहेगी। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं।